श्रीमद् भगवत गीता भाग -१३ कुरुक्षेत्र | part-13 | Geeta Gyan

3 days ago
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एवमुक्त्वाऽर्जुनः संख्ये रथोपस्थ उपाविशत् । विसृज्य सशरं चापं शोकसंविग्नमानसः
संजय ने कहा - युद्धभूमि में इस प्रकार कह कर अर्जुन ने अपना धनुष तथा बाण एक ओर रख दिया और शोकसंतप्त चित्त से रथ के आसन पर बैठ गया |
तात्पर्य
अपने शत्तु की स्थिति का अवलोकन करते समय अर्जुन रथ पर खड़ा हो गया था, किन्तु वह शोक से इतना संतप्त हो उठा कि अपना धनुष-बाण एक ओर रख कर रथ के आसन पर पुनः बैठ गया | ऐसा दयालु तथा कोमलहदय व्यक्ति, जो भगवान् की सेवा में रत हो, आत्मज्ञान प्राप्त करने योग्य है |
हरे कृष्ण
इस प्रकार भगवद्गीता के प्रथम अध्याय “कुरुक्षेत्र के प्रथम युद्धस्थल में सैन्यनिरिक्षण" का तात्पर्य पूर्ण हुआ |

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