"परमेश्वर का राज्य और धार्मिकता" मत्ती 6:33 |#shortsvideo #shorts #youtubeshorts #youtube #yt

4 months ago
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"परमेश्वर का राज्य और धार्मिकता" मत्ती 6:33 |#shortsvideo #shorts #youtubeshorts #youtube #yt
मत्ती 6:33 का विवरण
वचन:

"इसलिये पहिले तुम उसके राज्य और धर्म की खोज करो, तो ये सब वस्तुएं भी तुम्हें मिल जाएंगी।"

संदर्भ और अर्थ
संदर्भ:

पहाड़ी उपदेश: यह वचन यीशु के पहाड़ी उपदेश का हिस्सा है, जो मत्ती 5 से 7 तक फैला है। इस उपदेश में यीशु विभिन्न जीवन और आत्मिकता के पहलुओं पर चर्चा करते हैं। मत्ती 6 में विशेष रूप से उन्होंने भौतिक आवश्यकताओं को लेकर चिंता करने के बजाय परमेश्वर पर भरोसा रखने की शिक्षा दी है।

विश्वास और भरोसा: इस वचन से पहले, यीशु अपने शिष्यों को यह समझाने की कोशिश करते हैं कि उन्हें भोजन, पेय, और वस्त्र जैसी चीजों के लिए चिंता नहीं करनी चाहिए, क्योंकि इन सभी की देखभाल परमेश्वर करेगा।

महत्व:

परमेश्वर के राज्य की प्राथमिकता: यह वचन हमें सिखाता है कि हमें अपने जीवन में परमेश्वर के राज्य और उसकी धार्मिकता को सबसे पहले रखना चाहिए। इसका मतलब है कि हमें आत्मिक प्राथमिकताओं को अपने जीवन में सर्वोपरि रखना चाहिए।

आध्यात्मिक ध्यान: यह हमें सांसारिक चिंताओं से हटकर आत्मिक विकास और परमेश्वर की इच्छा के साथ संरेखण की ओर बढ़ने की प्रेरणा देता है।

प्रावधान का वादा: जब हम परमेश्वर को प्राथमिकता देते हैं, तो वचन में यह वादा किया गया है कि हमारी अन्य ज़रूरतें पूरी होंगी, जो परमेश्वर की देखभाल और प्रेम को दर्शाता है।

व्यवहारिक अनुप्रयोग:

प्राथमिकताओं का निर्धारण: यह वचन हमें हमारे जीवन की प्राथमिकताओं की जांच करने के लिए प्रेरित करता है, यह सुनिश्चित करने के लिए कि परमेश्वर का राज्य और उसकी धार्मिकता सर्वोच्च स्थान पर है।

चिंता पर विश्वास: यह एक ऐसा जीवन जीने के लिए प्रोत्साहित करता है जो चिंता से मुक्त हो और परमेश्वर के प्रावधान में विश्वास पर आधारित हो।

धार्मिक जीवन: परमेश्वर की धार्मिकता की खोज का अर्थ है ऐसा जीवन जीना जो परमेश्वर के मूल्यों और सिद्धांतों को प्रतिबिंबित करता हो।

मत्ती 6:33 का आध्यात्मिक अर्थ
परमेश्वर के राज्य की खोज: इसका मतलब है कि हम अपने जीवन में परमेश्वर के कार्यों, उसकी महिमा, और उसकी इच्छाओं के अनुसार जीने की कोशिश करें। यह एक सक्रिय खोज है, जो हमारी सोच, कार्य, और प्राथमिकताओं को आकार देती है।

धार्मिकता की खोज: यह धार्मिकता का अर्थ केवल बाहरी धार्मिक कार्यों से नहीं, बल्कि दिल से परमेश्वर की इच्छा के अनुसार जीने से है। यह उस पवित्रता और भलाई की ओर संकेत करता है जो परमेश्वर हमारे जीवन में देखना चाहता है।

आश्वासन: यह वचन हमें यह आश्वासन देता है कि यदि हम सही प्राथमिकताएं रखते हैं, तो परमेश्वर हमारे सभी भौतिक और आत्मिक ज़रूरतों का ध्यान रखेगा।

समाज में प्रासंगिकता
भारतीय संदर्भ में:
भौतिकता से ऊपर उठना: भारत जैसे समाज में, जहां भौतिक सफलता और उपभोग की संस्कृति अक्सर जीवन के उद्देश्य के रूप में देखी जाती है, यह वचन हमें भौतिकवाद से ऊपर उठकर आध्यात्मिक मूल्यों की ओर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रेरित करता है।

धार्मिकता और सद्गुण: भारतीय संस्कृति में, जहां धार्मिकता और सद्गुण को महत्व दिया जाता है, यह वचन इन मूल्यों को जीवन का केंद्र बनाने के लिए प्रेरित करता है।

व्यक्तिगत जीवन में:
आध्यात्मिक शांति: यह वचन चिंता और तनाव को कम करने में मदद करता है, क्योंकि यह हमें यह विश्वास दिलाता है कि परमेश्वर हमारी सभी आवश्यकताओं का ध्यान रखेगा।

जीवन की दिशा: यह हमारे जीवन की दिशा और उद्देश्य को स्पष्ट करता है, यह सिखाते हुए कि असली संतोष और शांति आत्मिक प्राथमिकताओं पर ध्यान केंद्रित करके ही प्राप्त की जा सकती है।

निष्कर्ष
मत्ती 6:33 हमें सिखाता है कि परमेश्वर के राज्य और उसकी धार्मिकता की खोज करना हमारे जीवन का मुख्य उद्देश्य होना चाहिए। यह वचन न केवल आध्यात्मिक प्राथमिकताओं की स्थापना के महत्व पर जोर देता है, बल्कि यह भी आश्वासन देता है कि जब हम परमेश्वर की इच्छा के अनुसार जीवन जीते हैं, तो हमारी सभी भौतिक आवश्यकताएं भी पूरी की जाएंगी। यह हमें विश्वास और भरोसे की ओर ले जाता है, जो हमारे जीवन को अर्थपूर्ण और संतोषजनक बनाता है।
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