"गुप्त उपवास और उसका प्रतिफल" मत्ती 6:16,17,18 |#shortsvideo #shorts #youtubeshorts #yt #youtube

4 months ago
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"गुप्त उपवास और उसका प्रतिफल" मत्ती 6:16,17,18 |#shortsvideo #shorts #youtubeshorts #yt #youtube
मत्ती 6:16-18 का विवरण
वचन:

"जब तुम उपवास करो, तो कपटी लोगों के समान अपना मुख उदास मत बनाओ, क्योंकि वे अपना मुख विकृत करते हैं, ताकि लोग उन्हें उपवासी जानें। मैं तुम से सच कहता हूँ, कि वे अपना प्रतिफल पा चुके। परन्तु जब तू उपवास करे, तो अपने सिर पर तेल मल, और अपने मुंह को धो, ताकि उपवासी होने का प्रत्यक्ष मनुष्यों को नहीं, परन्तु तेरे पिता को जो गुप्त में है, हो; और तेरा पिता, जो गुप्त में देखता है, तुझे प्रतिफल देगा।"

संदर्भ और महत्व
संदर्भ:

प्रवचन पर्वत पर: यह वचन यीशु के पर्वत पर दिए गए उपदेश का हिस्सा है, जहाँ वे धर्मपरायणता के विभिन्न पहलुओं पर शिक्षाएं देते हैं। इस विशेष अंश में, वे उपवास के विषय में सही दृष्टिकोण पर प्रकाश डालते हैं।

धार्मिक आचरण: यह अध्याय धार्मिक आचरण के विभिन्न पहलुओं पर केंद्रित है, जैसे कि दान, प्रार्थना, और उपवास। यीशु यहाँ आंतरिक भक्ति पर जोर देते हैं, न कि बाहरी दिखावे पर।

महत्व:

कपट से बचना:

दिखावे का खतरा: यीशु चेतावनी देते हैं कि उपवास का उद्देश्य स्वयं की धार्मिकता को दिखाना नहीं होना चाहिए। यह उन धार्मिक नेताओं की आलोचना है जो उपवास करते समय उदास चेहरा बनाकर लोगों का ध्यान आकर्षित करते थे।

सच्ची भक्ति: उपवास को दिखावे का माध्यम बनाने के बजाय, इसे ईश्वर के प्रति सच्ची भक्ति और समर्पण का माध्यम होना चाहिए।

गुप्त में उपवास:

आंतरिक अनुशासन: यीशु आंतरिक अनुशासन और आत्म-संयम पर जोर देते हैं। उपवास एक व्यक्तिगत और आध्यात्मिक अभ्यास है, जिसे मनुष्य और ईश्वर के बीच के संबंध को सशक्त बनाने के लिए किया जाना चाहिए।

स्वच्छता और सामान्य व्यवहार: उपवास के दौरान, व्यक्ति को सामान्य रूप से व्यवहार करना चाहिए, ताकि यह दूसरों को ज्ञात न हो। इसके लिए उन्होंने सिर पर तेल लगाने और चेहरे को धोने का उदाहरण दिया है।

स्वर्गीय प्रतिफल:

ईश्वर का प्रतिफल: जब उपवास गुप्त में किया जाता है, तो इसका प्रतिफल ईश्वर द्वारा दिया जाता है, जो हर छुपे कार्य को देखता है। यह आंतरिक और ईश्वर की उपस्थिति में की गई भक्ति के महत्व को दर्शाता है।

आध्यात्मिक संतोष: यीशु यह सिखाते हैं कि सच्ची खुशी और संतोष बाहरी प्रशंसा में नहीं, बल्कि ईश्वर की उपस्थिति में प्राप्त होती है।

सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भ
समाज में प्रभाव:

धार्मिक अभ्यास: यीशु का यह संदेश आज के समय में भी प्रासंगिक है, जहां धार्मिक अभ्यास कई बार सामाजिक प्रदर्शन का माध्यम बन जाते हैं। यह वचन आंतरिक भक्ति और व्यक्तिगत आध्यात्मिकता पर ध्यान केंद्रित करने की प्रेरणा देता है।

नैतिक शिक्षा: यह पाठ नैतिकता और ईमानदारी की शिक्षा देता है, जिसे धार्मिक समुदायों में सिखाया और अभ्यास किया जाता है।

सामाजिक मान्यता: समाज में दिखावे के बजाय आत्म-साक्षात्कार और सच्ची भक्ति का महत्व बढ़ाने की दिशा में यह मार्गदर्शन देता है।

निष्कर्ष
मत्ती 6:16-18 में, यीशु उपवास के प्रति सही दृष्टिकोण को स्पष्ट करते हैं। यह वचन दिखावे से बचने और ईश्वर के प्रति सच्ची भक्ति की आवश्यकता पर जोर देता है। इस प्रकार, यह हमारे धार्मिक अभ्यासों में ईमानदारी और आंतरिक शुद्धता के महत्व को रेखांकित करता है।

यह पाठ आज भी सभी धार्मिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमियों के लोगों के लिए प्रासंगिक है, जो आंतरिक अनुशासन और आध्यात्मिक संतोष की खोज में लगे हैं।#secret of faith and mercy in jesus christ.
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