मत्ती 4:1-2: "यीशु का जंगल में परीक्षा"

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मत्ती 4:1-2: "यीशु का जंगल में परीक्षा"
पृष्ठभूमि:

मत्ती 4 का यह अंश यीशु के जीवन की एक महत्वपूर्ण घटना को वर्णित करता है, जब उन्हें आत्मा द्वारा जंगल में ले जाया गया और चालीस दिनों और चालीस रातों तक उपवास के बाद शैतान द्वारा परखा गया। यह परीक्षा उनके सार्वजनिक सेवकाई के प्रारंभिक चरण में होती है।

पद:

मत्ती 4:1-2 (HIN):
"तब यीशु आत्मा के द्वारा जंगल में ले जाया गया ताकि शैतान से परखा जाए। और उसने चालीस दिन और चालीस रात उपवास किया, इसके बाद उसे भूख लगी।"

विवरण:
आत्मा के द्वारा जंगल में ले जाना:

आध्यात्मिक मार्गदर्शन: यीशु को आत्मा द्वारा जंगल में ले जाया गया, यह दिखाता है कि यह घटना ईश्वर की योजना का एक हिस्सा थी। यह उनके आध्यात्मिक मार्गदर्शन और उनके मिशन की तैयारी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था।
जंगल का प्रतीक: बाइबिल में जंगल अक्सर आत्मिक तैयारी, परीक्षण और शुद्धिकरण का प्रतीक होता है। यह एक ऐसा स्थान है जहां व्यक्ति ईश्वर के साथ गहरे संबंध और आत्मनिरीक्षण के समय का अनुभव करता है।
उपवास और भूख:

चालीस दिन और चालीस रात: यीशु ने चालीस दिनों और चालीस रातों तक उपवास किया। यह संख्या बाइबिल में महत्वपूर्ण है और अक्सर परिवर्तन और तैयारी के समय का प्रतीक होती है, जैसे कि मूसा और एलिय्याह का उपवास।
भूख लगना: उपवास के बाद यीशु को भूख लगी, यह दर्शाता है कि वह पूरी तरह से मानव थे और उन्होंने शारीरिक कमजोरी और जरूरतों का अनुभव किया। यह उनके मानवीय और दिव्य स्वभाव का प्रतीक है।
शैतान का परीक्षा लेना:

परीक्षा का उद्देश्य: यह पद यह संकेत करता है कि यीशु को शैतान द्वारा परखा जाना था। यह परीक्षा उनके ईश्वर के प्रति विश्वास, समर्पण और उनकी मसीहाई भूमिका की सत्यता को सिद्ध करने का एक साधन थी।
परीक्षा की तैयारी: उपवास और आत्मिक तैयारी के बाद, यीशु शारीरिक रूप से कमजोर हो सकते थे, लेकिन आध्यात्मिक रूप से वे तैयार और मजबूत थे। यह परीक्षा उनके दृढ़ संकल्प और ईश्वर के प्रति उनकी निष्ठा को प्रकट करती है।
व्यापक महत्व:
आध्यात्मिक संघर्ष: यह घटना दर्शाती है कि आध्यात्मिक संघर्ष और परीक्षा जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा हैं, यहां तक कि मसीह के लिए भी। यह हमें सिखाती है कि इन संघर्षों के माध्यम से हम अपनी आस्था को मजबूत कर सकते हैं।
दृढ़ता और विश्वास: यीशु का उपवास और परीक्षा यह दिखाती है कि दृढ़ता और ईश्वर के प्रति अटूट विश्वास के माध्यम से हम किसी भी चुनौती का सामना कर सकते हैं।
प्रेरणा का स्रोत: यीशु का यह अनुभव हमें प्रेरणा देता है कि कठिनाइयों और परीक्षाओं के समय में भी हमें ईश्वर के प्रति विश्वास और समर्पण बनाए रखना चाहिए।
व्यक्तिगत प्रतिबिंब:
मत्ती 4:1-2 हमें सिखाता है कि जीवन में आने वाली परीक्षाओं और कठिनाइयों के समय में ईश्वर के प्रति हमारा विश्वास और निष्ठा सबसे महत्वपूर्ण है। यह हमें प्रेरित करता है कि हम अपने जीवन के हर पहलू में ईश्वर के मार्गदर्शन को स्वीकार करें और उनकी योजना पर भरोसा रखें। यह पद हमें यह भी याद दिलाता है कि शारीरिक कमजोरी के बावजूद, हमारी आत्मा को मजबूत रखने के लिए आत्मिक तैयारी और उपवास का महत्वपूर्ण स्थान है।
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