"एल एलोहे इस्राएल: याकूब की वेदी" उत्पत्ति 33:20.

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उत्पत्ति 33:20: "एल एलोहे इस्राएल: याकूब की वेदी"
पृष्ठभूमि:

उत्पत्ति 33:20 में, याकूब अपने भाई एसाव के साथ अपनी मुलाकात और सुलह के बाद कनान की भूमि में बसता है। यह पद याकूब की धार्मिकता और ईश्वर के प्रति उसकी कृतज्ञता को दर्शाता है। याकूब ने ईश्वर के आशीर्वाद के लिए अपनी आस्था को प्रदर्शित करने के लिए एक वेदी का निर्माण किया और उसका नाम "एल एलोहे इस्राएल" रखा।

पद:

उत्पत्ति 33:20 (HIN):
"और उसने वहां एक वेदी बनाकर उसका नाम एल एलोहे इस्राएल रखा।"

विवरण:
याकूब की यात्रा और पुनर्मिलन:

वतन वापसी: याकूब अपने लंबे प्रवास के बाद, जहां उसने अपने मामा लाबान के साथ कई साल बिताए, अपने पैतृक भूमि कनान में लौटता है।
एसाव से सुलह: याकूब और एसाव के बीच की दुश्मनी के बावजूद, वे एक-दूसरे से मिलते हैं और अपने पुराने मतभेदों को सुलझाते हैं। यह पुनर्मिलन याकूब के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ है।
वेदी का निर्माण:

धार्मिक आस्था का प्रतीक: याकूब ने एक वेदी बनाकर अपने विश्वास और आस्था को प्रदर्शित किया। वेदी ईश्वर के प्रति उसकी कृतज्ञता और समर्पण का प्रतीक है।
स्थायी स्मारक: यह वेदी न केवल याकूब के लिए, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी एक स्थायी स्मारक के रूप में काम करती है, जो उन्हें ईश्वर के आशीर्वाद और सुरक्षा की याद दिलाती है।
नाम का अर्थ:

"एल एलोहे इस्राएल": इस नाम का शाब्दिक अर्थ है "ईश्वर, इस्राएल का ईश्वर।" यह नाम याकूब के नए नाम "इस्राएल" को संदर्भित करता है, जो उसे उस रात मिला जब उसने यब्बोक नदी के पास ईश्वर के साथ संघर्ष किया था।
ईश्वर का प्रभुत्व: यह नाम इस बात को दर्शाता है कि याकूब ने ईश्वर की प्रभुता और अपने जीवन में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार किया। यह नामकरण याकूब के ईश्वर के प्रति समर्पण और उसकी आस्था की पुष्टि करता है।
सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व:

वाचा का नवीकरण: याकूब की यह वेदी उसकी वाचा को नवीनीकृत करने और ईश्वर के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने का एक तरीका थी।
परिवार और वंशजों के लिए मार्गदर्शन: याकूब के वंशजों के लिए यह वेदी एक मार्गदर्शक के रूप में काम करती है, जो उन्हें उनके पूर्वजों की आस्था और ईश्वर के प्रति उनकी निष्ठा की याद दिलाती है।
व्यापक महत्व:
आस्था और कृतज्ञता: उत्पत्ति 33:20 का यह पद इस बात को दर्शाता है कि कठिनाइयों और संघर्षों के बाद भी, याकूब ने अपनी आस्था को बनाए रखा और ईश्वर के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की।
ईश्वर का अनुभव: याकूब के जीवन में आए अनुभव और ईश्वर के साथ उसकी मुठभेड़ों ने उसे एक गहरे धार्मिक व्यक्ति के रूप में विकसित किया, जिसने अपनी आस्था को सार्वजनिक रूप से व्यक्त किया।
परिवार और समुदाय के लिए उदाहरण: याकूब की यह वेदी उसकी संतानों और समुदाय के लिए एक उदाहरण है, जो उन्हें ईश्वर की ओर मार्गदर्शन और निष्ठा की प्रेरणा देती है।
व्यक्तिगत प्रतिबिंब:
उत्पत्ति 33:20 हमें सिखाता है कि कठिनाइयों और चुनौतियों का सामना करने के बाद भी, हमें अपनी आस्था और कृतज्ञता को बनाए रखना चाहिए। याकूब की वेदी हमारे लिए एक प्रेरणा है कि हम अपने जीवन में ईश्वर के आशीर्वादों को पहचानें और उनकी स्मृति को संजोएं। यह पद हमें यह भी याद दिलाता है कि हमारी आस्था न केवल हमारे लिए, बल्कि हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए भी महत्वपूर्ण है।
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