"ईश्वर की दया और याकूब की विनम्रता" उत्पत्ति 32:10 |

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उत्पत्ति 32:10 में, याकूब ईश्वर के सामने अपनी विनम्रता और उसकी महान दया की स्वीकारोक्ति करते हुए एक भावुक प्रार्थना करता है। इस पद का वर्णन याकूब के संघर्ष और उसकी आत्म-स्वीकृति को दर्शाता है। आइए इसे विस्तार से समझें:

पद का संदर्भ:
याकूब अपने भाई एसाव से मिलने के लिए यात्रा कर रहा है, जिसके साथ उसका पुराना विवाद था। वह अपने परिवार और संपत्ति के साथ यात्रा कर रहा है और भविष्य की संभावनाओं से भयभीत और चिंतित है। इस स्थिति में, वह ईश्वर से मदद की याचना करता है और अपनी प्रार्थना में अपनी कठिनाइयों को व्यक्त करता है।

उत्पत्ति 32:10 का हिंदी अनुवाद:
“मैं तेरी सारी करुणा और सम्पूर्ण सच्चाई के योग्य नहीं हूँ, जो तूने अपने दास पर की है। क्योंकि मैं अपनी लाठी के साथ ही इस यरदन नदी को पार कर गया था, और अब मैं दो दल हो गया हूँ।”

पद का गहन विश्लेषण:
विनम्रता और आभार:

"मैं तेरी सारी करुणा और सम्पूर्ण सच्चाई के योग्य नहीं हूँ": यहाँ याकूब अपनी विनम्रता दिखाता है। वह स्वीकार करता है कि उसने ईश्वर की उन सभी आशीषों और कृपाओं को प्राप्त किया है जिनके वह योग्य नहीं था। याकूब समझता है कि उसकी सभी सफलताएँ और संपत्ति ईश्वर की कृपा का परिणाम हैं, न कि उसके अपने प्रयासों का।
ईश्वर की अनंत दया:

"जो तूने अपने दास पर की है": यह बताता है कि याकूब ने ईश्वर की दया और कृपा को अनुभव किया है। याकूब खुद को "दास" के रूप में प्रस्तुत करता है, यह दर्शाते हुए कि वह ईश्वर के प्रति समर्पित है और उसकी शक्ति और मार्गदर्शन की आवश्यकता को पहचानता है।
समृद्धि और विश्वास:

"क्योंकि मैं अपनी लाठी के साथ ही इस यरदन नदी को पार कर गया था": जब याकूब ने पहली बार यात्रा शुरू की थी, उसके पास केवल एक लाठी थी। यह उसकी तत्कालीन सरलता और गरीबी का प्रतीक है।
"और अब मैं दो दल हो गया हूँ": समय के साथ, याकूब ने बहुत अधिक संपत्ति और परिवार अर्जित किया है। यह उसकी समृद्धि और उन्नति को दर्शाता है। लेकिन वह जानता है कि यह सब कुछ ईश्वर की कृपा से ही संभव हुआ है।
पद की शिक्षा:
उत्पत्ति 32:10 हमें सिखाता है:

ईश्वर की करुणा और दया को पहचानना और उनके लिए आभारी रहना।
अपने संघर्षों और सफलताओं में विनम्रता बनाए रखना।
यह समझना कि हमारे जीवन की समृद्धि और आशीर्वाद, ईश्वर की अनुकंपा का परिणाम होते हैं।
निष्कर्ष:
उत्पत्ति 32:10 याकूब की विनम्रता और ईश्वर के प्रति उसकी गहरी श्रद्धा का एक सुंदर उदाहरण है। यह हमें ईश्वर की अनंत दया के महत्व को समझने और उसके प्रति कृतज्ञता जताने की प्रेरणा देता है। याकूब की प्रार्थना हमें याद दिलाती है कि चाहे हम कितनी भी समृद्धि प्राप्त कर लें, हमें अपनी विनम्रता और ईश्वर के प्रति आभार बनाए रखना चाहिए।

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