माँ- मिट्टी और मुनव्वर Munawwar Rana Since1952 To 2024

10 months ago
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Munawwar Rana, who used to recite a couplet of his own or of any other poet on every occasion, today said goodbye to the soil in which he had recited so many couplets with the desire to merge into them. This soil of Munawwar was the answer to the communalism which used to view the people of his community with suspicion. There is no example of the claim and loyalty that Munawwar has presented in his couplets, long before the era of losing a lot in post-2014 India. It is difficult to estimate his popularity. Who knows how many people he drenched with his poetry in his 71 years of life. How many people kept taking out time and going to that Mushaira where Munawwar was called. This is the income of poets and poets. They gain listeners and leave themselves in their memories.
हर बात पर अपना या किसी और शायर का एक शेर सुना देने वाले मुनव्वर राणा आज उस मिट्टी को अलविदा कह गए, जिसमें समा जाने की ख़्वाहिश लिए न जाने उन्होंने कितने ही शेर कहे। मुनव्वर की यह मिट्टी उस सांप्रदायिकता का जवाब थी, जो उनके समाज के लोगों को शक की निगाह से देखा करती थी। 2014 के बाद के भारत में बहुत कुछ खो देने के दौर के बहुत पहले मुनव्वर ने अपने शेरों में जो दावेदारी पेश की, जो वफ़ादारी पेश की है, उसकी कोई मिसाल नहीं। उनकी लोकप्रियता का अंदाज़ा लगाना मुश्किल है। 71 साल के जीवन में न जाने कितने लोगों को उन्होंने अपनी शायरी से सराबोर किया। कितने लोग वक्त निकाल कर उस मुशायरे में जाते रहे जहां मुनव्वर बुलाये जाते रहे। शायर और कवियों की यही कमाई है। वो सुनने वाले हासिल करते हैं और खुद को उनकी यादों में छोड़ जाते हैं।
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