Ramayani Sadhna Satsang Bhag 34

11 months ago
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परम पूज्य डॉक्टर श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से
((1158))

*रामायणी साधना सत्संग*
*सुंदरकांड भाग-३४ (34)*

*सुंदरकांड का आरंभ ,जांबवान का श्री हनुमान जी महाराज की शक्तियों को याद करवाना व श्री हनुमान जी महाराज की गुणगाथा का वर्णन*

पैसे का गरीब होना तो कोई बहुत बड़ी बात नहीं है । क्या फर्क पड़ता है आदमी पैसे का गरीब है । यदि बुद्धि का गरीब है, तो वह सर्व नाश को प्राप्त होकर रहेगा । वह परमात्मा की ओर नहीं मुड़ सकेगा । प्राय: इस प्रकार की बातचीत पूछी जाती है ।
चले गए हैं हनुमान जी महाराज अपने दल के साथ । और लोग अपनी अपनी दिशा में चले गए हैं । सुंदरकांड का आरंभ होता है।

सुंदरकांड का आरंभ आज जांबवान की प्रेरणा से होता है । आपने शब्द पढ़ें, जांबवान प्रेरित करते हैं हनुमान जी महाराज को । क्या अभिप्राय है इसका ?
क्यों उन्हें अपना कर्तव्य पता नहीं मुझे क्या करना है ?
क्या आवश्यकता है जांबवान की प्रेरणा की ?
इसके पीछे एक छोटी सी कथा है ।
भक्तोंजनों आप जानते ही हैं अहिल्या एवं गौतम ऋषि की पुत्री है अंजना, जो हनुमान जी की मां है, अप्सरा है ।
इनका विवाह तो हुआ हुआ है केसरी वानर के साथ, लेकिन अभी तक कोई संतान इत्यादि नहीं । विचरती है, अपना रूप परिवर्तित भी कर लेती है ।
अंजना अनेक सी विद्याएं इस प्रकार की जानती है । पहाड़ी पर विचार रही है ।
बहुत सुंदर, अति सुंदर । ऐसे लगा किसी ने मेरा दुपट्टा पकड़ा है, किसी ने मेरी साड़ी जो भी कुछ भी पहना हुआ, उसका पल्लू पकड़ा है, और उस पल्लू पकड़ने वाले ने जोर से आलिंगन किया । कौन हो तुम ?
मेरे सतीत्व को भंग करने वाले, मेरे पतिव्रत धर्म को भंग करने वाले आप कौन हो ? अदृश्य है, कहते हैं -वायु,पवन ।
इसीलिए हनुमान जी महाराज को पवन पुत्र कहा जाता है । मैं पवन हूं ।
देवी, सुंदरी, ऐसा कहते हैं,
सुंदरी मेरे ऊपर संदेह ना कर । मैं तेरा सतीत्व भंग नहीं कर रहा । मैं तेरा जो पतिव्रत धर्म है, मैं उसे भंग नहीं कर रहा ।
मेरे आलिंगन मात्र से तेरे एक बहुत तेजस्वी पुत्र पैदा होने वाला है । यह हनुमान जी महाराज को जांबवान सुना रहे हैं । मानो हनुमान जी महाराज को कुछ भूला हुआ है, वह उसे याद दिला रहे हैं ।
हनुमान तेरी मां बहुत प्रसन्न हुई ।
गर्भवती हो गई । तेरा जन्म एक गुफा में हुआ । मैंने उसी वक्त, जांबवान कहते हैं, पवन ने, वायु ने उसी वक्त कहा, यह मेरे जैसा तेजस्वी होगा, मेरा जैसा नभ मंडल में भी उड़ने वाला होगा, और जल में भी तैरने वाला होगा, इत्यादि इत्यादि ।
बड़ा भारी तेजस्वी होगा, ओजस्वी होगा। ऐसी बातें वायु जी महाराज ने कही ।

तेरा जन्म हुआ । मां बहुत प्रसन्न हुई ।
अंजना बहुत प्रसन्न । बालकाल में ही तुम बड़े शरारती, बड़े तेजस्वी, बड़े इस प्रकार के थे, बड़े शक्तिशाली । लपक पड़े सूर्य पर उसे पकड़ने के लिए । इंद्र देवता ने आप पर प्रहार किया, आप नीचे गिर पड़े । आप नीचे गिरने से आपकी हनु टेढ़ी हो गई, इसलिए नाम पड़ गया हनुमान । हनुमान की यह थोढ़ी जो है वह टेढ़ी हो गई, इसलिए नाम पड़ा उनका हनुमान ।

वायु को पता लगा मेरे पुत्र का इस प्रकार से अपमान हुआ है, उसने बहना बंद कर दिया, चलना बंद कर दिया । देवी देवता बड़े आतंकित, बड़े दुखी । आकर क्षमा याचना करें । महाराज क्षमा करें हमें पता नहीं था। हमारे से भूल हो गई है । इंद्र देवता आदि आकर क्षमा मांगते हैं । तब ब्रह्मा जी ने आकर वरदान दिया । याद दिलाते हैं हनुमानजी महाराज को जांबवान, तब ब्रह्मा जी महाराज ने तुम्हें वरदान दिया था, हनुमान तुम युद्ध में कभी किसी के अस्त्र-शस्त्र से नहीं मारे जा सकोगे ।
उसी वक्त इंद्र देवता ने प्रसन्न होकर क्षमा याचना भी की वायु से, पवन से क्षमा मांगी, और कहा इच्छा मृत्यु का वरदान भी तुझे दिया ।

तुम छोटे थे ना हनुमान, तो ऋषि-मुनियों को भी तंग किया करते थे । संत महात्मा कभी किसी ने शिवलिंग रखा हुआ है, कभी किसी ने शालिग्राम रखा हुआ है, तो आप जब वह पूजा करते थे, उनके शालिग्राम इत्यादि पकड़कर या शिवलिंग इत्यादि पकड़कर उन्हें समुद्र में फेंक देते थे । इतना बल था तेरे अंदर । उस वक्त की तू बड़ी-बड़ी शिला को भी जो है वह धकेल देता था ।

संत महात्मा बड़े आतंकित हो जाते थे, बड़े भयभीत हो जाते थे । एक संत महात्मा ने श्राप दिया था तुम्हें ।
जा, तुझे अपना बल भूल जाए ।
हनुमान जी महाराज आप बहुत बलवान हो, आप अति शक्तिशाली हो ।
जांबवान जब प्रेरणा देता है उन्हें उनके बल की, भूले हुए बल की याद दिलाता है,
उठो महाराज आप के बिना यह काम कोई काम नहीं कर सकता ।
हम वानरों का जो संताप है वह मिटाइएगा, दया कीजिएगा हमारे ऊपर,
कृपा कीजिएगा हमारे ऊपर,
और जाइएगा मातेश्वरी सीता की खोज के लिए । सुंदरकांड का शुभारंभ यहीं से होता है ।

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