Ramayani Sadhna Satsang Bhag 33

1 year ago
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परम पूज्य डॉक्टर श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से
((1157))

*रामायणी साधना सत्संग*
*किष्किन्धाकाण्ड भाग- ३३ (33)*

*माताश्री मां जानकी को खोजने के लिए चार दलों की व्यवस्था करना एवं परमात्मा श्री राम का श्री हनुमान जी को नामांकित अंगूठी देना*

आज सुग्रीव जी आ गए हैं प्रभु राम के पास। प्रभु राम ने कहा है मुझे तो कुछ पता नहीं है सुग्रीव । आप ही सब कुछ जानते हो इस इलाके का क्या हिसाब किताब है, मैं नहीं जानता । सेना भी आपकी है ।
किस प्रकार का आपने काम लेना है, आप जानो । आप संभालो काम को । तो सुग्रीव जी महाराज चार छोटे-छोटे दल बना दिए । एक को पूर्व दिशा में भेज देते हैं, एक को पश्चिम दिशा में भेज देते हैं, एक को उत्तर दिशा में भेज देते हैं, एक दल बाकी बचा है जिसमें हनुमान जी महाराज हैं, जांबवंत जी हैं और अंगद, और भी होंगे साथ, इनको दक्षिण दिशा में भेज देते हैं । आप लोग दक्षिण दिशा में जाइएगा ।

प्रभु राम हनुमान को देखते हैं तो उनके कार्य कौशल से अति प्रसन्न है प्रभु । बातचीत तो बहुत नहीं हुई उनके साथ, एक-दो मुलाकाते ही हुई हैं, लेकिन प्रभावित हैं, impress है भगवान हनुमान जी महाराज से ।
इसलिए इस विश्वास से कि यह व्यक्ति काम का है, यह कुछ ना कुछ काम करेगा, या यूं कहिएगा भगवान उससे अपना कुछ काम करवाना चाहते हैं । जैसे आपको ठीक लगे वैसे समझ लीजिएगा ।
इसलिए उसे नामांकित अंगूठी अपनी जो है वह दे देते हैं । मानो नामांकित अंगूठी राम लिखा हुआ है, मानो महाराज श्री ने हनुमान जी महाराज को दीक्षा दे दी राम नाम की । आप राम नाम जपते जाइएगा । जिस कार्य के लिए जा रहे हो, राम नाम जपते जाइएगा और वह हनुमान जी महाराज अंगूठी को अपने मुख में डाल लेते हैं । इसका तात्पर्य भी यही है कि वह राम नाम जपते हुए जा रहे हैं ।

आज तीसरी साधक की साधना आरंभ हुई है । दो साधकों की साधना आप पहले देख चुके हुए हो । आज एक तीसरे साधक की साधना का शुभारंभ होता है । यह किस मार्ग से चलते हैं कृपया ध्यान दें ।
हैं तो यह भक्ति मार्ग के अनुयाई, हैं तो यह शरणागति के अनुयाई, हैं तो यह समर्पण मार्ग पर चलने वाले, पर अभी भगवान इनका सीधा समर्पण स्वीकार नहीं करने जा रहे और ना ही यह स्वयं समर्पण करने जा रहे हैं । इसलिए साधना के मार्ग पर चल रहे हैं । लौटेंगे तो प्रभु राम इनसे पूछेंगे,
हनुमान जाते वक्त की यात्रा में और लौटते वक्त की यात्रा में क्या तुम्हें कोई अंतर दिखाई दिया ?

हां महाराज, जाते वक्त तो मैं साधना के मार्ग से गया था, इसलिए कठिनाइयों से भरा हुआ मार्ग था । आती दफा मैं कृपा के मार्ग से आया हूं, कोई कठिनाई, ना कोई विघ्न आया।
अब शरणागति की बात आएगी,
अब surrender की बात, समर्पण की बात आएगी । प्रश्न उठता है भक्तजनों हर कोई कहता है, ठोक बजाकर कहता है परमेश्वर की कृपा ही सर्वेसर्वा है, परमेश्वर की कृपा ही सर्वेसर्वा, सर्वोपरि है परमात्मा की कृपा । आप किसी से भी पूछ कर देख लो, अंजान से लेकर जो बहुत जानने वाला है, उससे भी पूछ कर देख लीजिएगा ।
बच्चा बच्चा जानता है इस बात को परमेश्वर की कृपा ही सर्वे सर्वा है, वह सर्वोपरि है, भले ही उसने अनुभव किया है या नहीं किया । पढ़ी पढ़ाई बात ही बेशक कह रहा हो आपसे, लेकिन कहेगा हर कोई ।
साधना का क्या स्थान है ?
यदि परमात्मा की कृपा ही सब कुछ है, तो साधना का क्या स्थान है ?
किसलिए साधना करने की आवश्यकता है? किसलिए नौ रात्रि के लिए यहां पर आए हुए हो, दलिया इत्यादि खाकर अपना निर्वाह कर रहे हो ?
इतने इतने लोग एक कमरे में पड़े हुए, डबल बेड पर अकेले सोने वाले,15-15 इकट्ठे सो रहे हैं एक कमरे में, आखिर क्या अभिप्राय है इसका ?
क्या आवश्यकता है ऐसी साधना की ?

संत महात्मा कहते हैं परमेश्वर की कृपा सर्वे सर्वा है, परमात्मा की कृपा सर्वेसर्वा है, सर्वोपरि है । इसे जानने के लिए साधना की आवश्यकता है । यह बात इतनी जल्दी हमारे दिमाग में घुसती नहीं । मैं लाख कहता रहूं और लोग आपको बेशक कहते रहे ।
नहीं नहीं यह कैसे हो सकता है ?
साधना का क्या स्थान है ? यही स्थान है साधना का, साधना इसीलिए करनी आवश्यक है आप जान सको कि परमात्मा साधना से नहीं मिलते, परमात्मा अपनी कृपा से मिलते हैं ।

बुद्धि जीवी प्राय: कहते हैं -
यदि परमात्मा ही सब कुछ करने वाला है डॉक्टर, इंजीनियर, आईएएस ऑफिसर , बड़े बड़े वकील इत्यादि, जो बहुत बुद्धिजीवी हैं, अपने आप को बड़े मेधावी समझने वाले लोग जो हैं, प्राय: प्रश्न पूछेंगे,
यदि परमात्मा ही सब कुछ करने वाला है तो परमात्मा ने इस खोपड़ी में जो थोड़ा बहुत रखा हुआ है, वह किस लिए भर रखा हुआ है ?

संत महात्मा समझाते हैं भाई शांत हो जाओ। यह जो इतनी सी बुद्धि, इतनी सी अल्प बुद्धि जो दी हुई है, सिर्फ इसीलिए दी हुई है कि तुम जान सको यह बुद्धि निरर्थक है, किसी काम की नहीं । कैसे जानोगे ? इसीलिए परमात्मा ने यह बुद्धि इतनी सी दे रखी है, ताकि आप यह जान सको ।
अरे महाराज अपनी बुद्धि पर भरोसा ना करो। यह तो अति दुर्बल है, अति निर्धन बुद्धि है । यह किसी काम की नहीं है ।

परमात्मा की बुद्धि के बिना, यदि यह परमात्मा की बुद्धि के साथ युक्त नहीं होती तो बिल्कुल बेकार है, गरीब बुद्धि है यह । पैसे का गरीब होना तो कोई बहुत बड़ी बात नहीं है । क्या फर्क पड़ता है, आदमी पैसे का गरीब है । यदि बुद्धि का गरीब है तो वह सर्वनाश को प्राप्त होकर रहेगा, वह परमात्मा की ओर नहीं मुड़ सकेगा । यह प्राय: इस प्रकार की बातचीत पूछी जाती है। चले गए हैं हनुमान जी महाराज अपने दल के साथ । और लोग अपनी अपनी दिशा में चले गए हैं । सुंदरकांड का आरंभ होता है ।

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