Ramayani Sadhna Satsang Bhag 31

1 year ago
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परम पूज्य डॉ श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से
((1155))

*रामायणी साधना सत्संग*
*किष्किन्धाकाण्ड भाग -३१ (31)*

*भगवान श्री राम का वानरों को सम्मान देना एवं बाली का अपने पुत्र अंगद को श्रीराम चरणों में समर्पित करना*

वानरों की तुलना उन्होंने अपने गुरु महाराज महर्षि वशिष्ठ से कर दी । अपने गुरुदेव को कहते हैं महाराज आप के कारण और इन वानरों के कारण ही तो मैं रावण पर विजय प्राप्त कर सका । दोनों को एक जैसा मिला कर रख दिया । जैसे गुरु वशिष्ठ जी महाराज है वंदनीय, पूजनीय जैसे वह है, जिनकी कृपा काम करती है, वैसे ही वानरों के लिए भी कह दिया । आप दोनों के कारण ही विजय प्राप्त हुई है ।

महाराज एक बात बताइए आपने मुझे मार तो डाला, पर क्या मैं अभी भी पापी हूं ? क्या व्यक्ति आपके जब सामने आ जाता है तो पापी रहता है ? तो इसका अर्थ यह हुआ यदि पापी समझ कर आपने मुझे मारा है, अभिमानी समझकर मुझे मारा है और आमना-सामना हुआ है महाराज, तो आप के प्रभुत्व पर मुझे महाराज संदेह होता है ।

प्रभु मुस्कुराए, वाह !
मुस्कुरा कर उसके सिर पर हाथ रखते हैं ।
तुम सदा जिंदा रहोगे, बाली को कहा ।
इसका अर्थ है महाराज मुझे अभी तक भी आपने माफ नहीं किया । अभी भी मेरे से रुष्ट हैं आप । अरे नहीं मैं तो तुम्हें अमरत्व का वरदान दे रहा हूं । तभी तो महाराज मुझे लग रहा है कि आप अभी भी मेरे से रुष्ट है । मेरे जैसी मृत्यु किसको मिलेगी । प्रभु मारते तो सबको आप ही हो, पर अव्यक्त रूप से, दिखाई नहीं देते । पर मुझे तो वह मारने वाला, सब को मारने वाला, मेरे सामने खड़ा होकर मार रहा है, ऐसी मृत्यु महाराज मुझे कब मिलेगी । फिर दोबारा मिले ना मिले । अभी तो बहुत अच्छा है मुझे अमरत्व का वरदान दे रहे हैं आप । इसलिए लगता है महाराज आपने मुझे अभी क्षमा नहीं किया, आप मेरे से अभी रुष्ट हैं ।

नहीं नहीं । रुष्ट नहीं मैं ।
बिल्कुल स्वस्थ हूं, ऐसा कुछ नहीं सोचना। भाई शरीर तुम्हें इसलिए दे रहा हूं इस से तू मुक्ति प्राप्त कर सकेगा, इससे तू सेवा कर सकेगा, इससे तू भक्ति कर सकेगा । इसका प्रबंध मैंने कर रखा है । बाली कहते हैं,
मैं महाराज ज्ञान और भक्ति दोनों का आनंद लेना चाहता हूं ।
इसीलिए तो मैं शरीर दे रहा हूं तुम्हें ।
तू ज्ञान का भी आनंद ले और भक्ति का भी आनंद ले । नहीं, महाराज अब इस शरीर के माध्यम से नहीं ।

आप तो महाराज परम ज्ञानी है ।
आपको तो पता ही है पुत्र जो है वह पिता का प्रतिनिधि होता है । अंगद की बांह पकड़ लीजिएगा, वह सेवा करेगा ।
और थोड़ा आगे आइएगा, मुझ में हिलने की हिम्मत नहीं है महाराज । अपने हाथ प्रभु के चरणों पर रख दिए और चरण जोर से पकड़ कर रखें । मैं महाराज इनको नहीं छोडूंगा, जब तक मैं मर ना जाऊं । और आप अंगद की बांह नहीं छोड़िएगा । मेरे दोनों काम हो जायेंगे । भक्ति का आनंद भी मुझे मिल जाएगा और महाराज ज्ञान का आनंद भी मुझे मिल जाएगा, सेवा का आनंद भी मुझे मिल जाएगा । दोनों का आनंद मुझे मिल जाएगा । ऐसा ही बनाकर रखिएगा । दोनों का आनंद बाली जी महाराज ले रहे हैं ।

मेरे पुत्र अंगद की बांह पकड़ कर रखिएगा। महाराज यह पकड़ेगा तो आप छुड़ा सकते हो । आप पकड़ोगे महाराज तो कोई माई का लाल छुड़ाने वाला नहीं है । पकड़ कर रखना महाराज, यह आपकी सेवा करेगा, यह मेरा काम करेगा ।

आप ध्यान दें प्रभु राम सुमेरु शिला पर लेटे हुए हैं । चार व्यक्ति वहां विराजमान है । सुग्रीव, विभीषण, अंगद एवं हनुमान जी । विश्राम कर रहे हैं प्रभु । अपना सिर जो है उन्होंने सुग्रीव की गोद में रखा हुआ है । मानो एक तरफ अपने सिर के पास सुग्रीव को बिठा रखा है, दूसरी तरफ विभीषण को बिठा रखा है । अंगद एवं हनुमान जी दोनों पांव की और बैठे हुए हैं ।
और भगवान कह रहे हैं मैंने इन चारों को अपना पद प्रदान कर दिया । क्या किया है महाराज आपने ?

सुग्रीव को मैंने किष्किंधा का पद प्रदान कर दिया और विभीषण को लंका का । यह जो दो सामने भक्त बैठे हुए हैं मेरे चरणों में, अपना पद दे दिया है ।
तारा विलाप करती है । भगवान पहले बाली को उपदेश देते हैं । अभी चर्चा आपने पढ़ी है तारा को उपदेश देते हैं । इसके बाद क्या होता है वह सब आपने पढ़ लिया है । इसे यहीं समाप्त करने की इजाजत दीजिएगा । धन्यवाद।

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