Premium Only Content
Ramayani Sadhna Satsang Bhag 24
परम पूज्य डॉक्टर श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से
((1148))
*रामायणी साधना सत्संग*
*अयोध्या कांड भाग -२४ (24)*
*माता कैेकई*
इसलिए वह तेरी जो सौत है ना कौशल्या, उसका पढ़ाया हुआ है यह । यह उसका षड्यंत्र है । यह उसका है सब कुछ । उसी ने भरत को बाहर भेजा हुआ है, इत्यादि इत्यादि । बेचारी कौशल्या को पता भी नहीं है, यह क्या हुआ है, क्या नहीं हुआ है । पर मंथरा जो है वह इस प्रकार की पट्टी पढ़ा देती है । मंथरा जानती है कैकई बहुत जिद्दी है । इस के मुख से यदि कोई चीज एक बार निकल जायेगी, यदि वह अपनी जिद पर आ जाती है, तो फिर पक्की है । फिर परमात्मा भी इसको जिद से हटा नहीं सकता । वह इस बात का भी लाभ लेती है ।
यह युद्ध के संस्कार उसने अपनी मां से लिए हैं । कैकई की मां का नाम है कैकाई । अश्वपति की पत्नी है यह । कहते हैं किसी संत महात्मा की कृपा से अश्वपति को पशुओं की भाषा समझ में आती थी, पक्षियों की भाषा समझ में आती थी । यह कीड़े मकोड़े, चिंटी इत्यादि जो रेंगते हैं, इनकी भाषा समझ में आती थी । वह आपस में क्या बोलते हैं, वह अश्वपति समझ जाते थे । एक शर्त रखी थी महात्मा ने,
यदि इनकी वार्तालाप, इन की चर्चा को तू किसी को बताएगा, तो तेरे सिर के एक हजार टुकड़े हो जाएंगे । इसलिए यह बात अपने तक ही रखना ।
वह क्या बातचीत हो रही है, क्या आपस में वार्तालाप कर रहे हैं, क्या चर्चा हो रही है आपस में, दो पशु, दो पक्षी, दो चिंटा चिंटी इत्यादि आपस में क्या चर्चा कर रहे हैं, इसका भेद किसी को ना देना । जिस दिन तू भेद दे देगा, उस दिन तेरे सिर के एक हजार टुकड़े हो जाएंगे ।
आज दोनों पति-पत्नी बैठे हुए हैं । कैकई की मां बैठी हुई है, कैकई के पिता बैठे हुए हैं । एक चिंटी अपने मुख में छोटा सा चावल का दाना लिए जा रही है । आगे से एक और चिंटी मिलती है । आपस में कोई बातचीत होती है । यह समझ जाते हैं । यह सुन लेते हैं उनकी बातचीत और उसे समझ लेते हैं यह क्या कह रही है ?
चिंटी कह रही है मैं बहुत भूखी हूं यह चावल का दाना मुझे दे दे । जिसके मुख में चावल का दाना है, वह कहती है नहीं, तू उच्च जाति की है, मैं तुझे नहीं दूंगी चावल का दाना ।
यह सुनकर तो अश्वपति हंसने लग जाते हैं। कैकई की माता ने कारण पूछा ?
आप मूर्ख तो नहीं हो, कोई ना कोई बात तो है, क्यों हंसे हो, मुझे कारण बताओ ? कुछ बताएं ना, मैं बता नहीं सकता । यह दो चिंटीयां यहां आपस में इनकी बात सुनकर, इनको देखकर तो ऐसे ही मेरे मुख से हंसी निकल गई । नहीं, क्या बात है ?
बहुत आग्रह कर रही हैं और यह मना कर रहे हैं । कैकाई मेरे से यह बात ना पूछ । मैं तुम्हें बता नहीं सकता, और यदि मैं तुम्हें बताऊंगा मैं तुम्हें सच कहता हूं मेरे सिर के उसी वक्त एक हजार टुकड़े हो जाएंगें, मैं मर जाऊंगा। कैकाई कहती है so what, कोई बात नहीं, मुझे बात बताओ । ऐसा नहीं कि महिलाएं ही ऐसी, कोई भी हो सकता है । पर यहां पर कैकई की मां की बात चल रही है ।
जब ज़िद को पकड़ लिया, राजा अश्वपति ने सोचा मरना निश्चित है, इसको बताना ही पड़ेगा । यह इस प्रकार से मानेगी नहीं ।
और यदि मरना ही है मुझे, तो चलो काशी चलते हैं । हो सकता है इसकी ज़िद में कुछ फीकापन आ जाए । और यदि मुझे मरना ही है भाई तो मैं वहां मरूगां । यहां क्यों मरूं । चलो काशी में चलकर मरता हूं ।
ले गए वहां पर । लेकर जाकर क्या देखते हैं, वहां पर कुछ दिन व्यतीत हुए, लेकिन इसने अपना आग्रह नहीं छोड़ा । वह आपने बात नहीं बताई मुझे अभी तक, वह मुझे बताओ, क्या बात है ? पुन: कहते हैं, अरी ! मैं मर जाऊंगा यदि मैंने बात बता दी तो । लेकिन वह इस बात की परवाह नहीं करती । आखिर एक दिन किसी पेड़ के नीचे बैठे हुए हैं क्या देखते हैं -
एक कुआं है । एक बकरा एवं बकरी दोनों आपस में वार्तालाप, चर्चा कर रहे हैं ।
बकरी कहती है यदि तुम चाहते हो की
मैं तेरे घर में बसूं, बसी रहूं, तो कुएं में जो घास है वह मुझे निकाल कर दे । बकरा कहता है देख कुएं में जाना या मुख अपना डालना, मैं कुएं में गिर जाऊंगा, तो मैं मर जाऊंगा । ऐसी जिद ना कर । मैं उसमें से घास नहीं निकाल सकता । मानो तू मुझे मौत के मुंह में भेज रही है । बकरी भी कैकाई की तरह ही कहती है ।
so what मुझे घास ला कर दीजिएगा ।
बकरा जब देखता है कि यह जिद पर आ गई हुई है, तो अपने सींगो से उसे लहूलुहान कर देता है । बहुत मारता है उसे, बहुत मारता है, और मार मारकर उसे लहूलुहान कर देता है। जब तक बकरी उससे हाथ जोड़कर तो क्षमा याचना नहीं करती । अश्वपति को एक बिंदु मिल गया । चल, घर चल कर तो तुम्हें बताऊंगा वह चिंटा चिंटी आपस में क्या बातचीत कर रहे थे ?
घर आकर बिल्कुल अश्वपति जी महाराज ने कैकई की मां से बिल्कुल वही व्यवहार किया है जो बकरे ने बकरी के साथ किया था । और तब तक नहीं छोड़ा जब तक उसने क्षमा याचना नहीं कर ली । कैकई पर भी अपनी मां के संस्कार उसी प्रकार के आए हुए हैं । कैकई कोप भवन में चली गई है । सब चीज हो गई है तय । कोप भवन में जाकर तो वह लेट गई है ।
माताओं सज्जनों उसी वक्त राजा दशरथ का आगमन होता है । राजा दशरथ बहुत भरोसा लेकर तो कैकई के पास जा रहे हैं । मेरी कैकई राज्याभिषेक की सूचना मिलेगी उसको, कल राम का राज्याभिषेक होने वाला है, राम को राज्य मिलने वाला है, तो उसके हर्षो उल्लास की सीमा नहीं रहेगी , बहुत प्रसन्न होगी वह । लेकिन जाते ही जैसे ही मकान की दुर्दशा देखते हैं, महल की दुर्दशा देखते हैं, कारण पूछते हैं । कोप भवन में है । यदि होनी प्रबल ना होती, प्रारब्ध प्रबल ना होती, परमेश्वर की इच्छा, परम इच्छा प्रबल ना होती, तो राजा दशरथ को वहीं से मुड़ जाना चाहिए था ।
इतना शुभ अवसर है कल, इतना शुभ समाचार है, इस वक्त यह कोप भवन में चली गई है, तो मुझे इसका मुख नहीं देखना चाहिए । लेकिन परिस्थिति इसकी दुर्बलता को भी जानती है । उसने इसकी दुर्बलता का ही फायदा लिया । ध्यान दें कैकई ने मंथरा जो उसकी मार्गदर्शिका है, उससे यह नहीं पूछा-
फर्ज कर जो कुछ तू कह रही है यदि दशरथ आता ही नहीं है, तो कोप भवन में जा कर मैं क्या करूंगी ? यह नहीं पूछा क्यों ?
*माता कैेकई एवं महाराजा श्री दशरथ जी महाराज के संवाद*
कैकई को पता है राजा दशरथ रात को मेरे पास आए बिना रह ही नहीं सकते, उनको आना ही होगा । परिस्थिति फिर राजा दशरथ की कमजोरी का भी फायदा उठा रही है । कामी व्यक्ति है यह । आ कर ही रहेगा । मेरे प्रति उसका विशेष आकर्षण है। वह आएगा, अवश्य आएगा । यह हो ही नहीं सकता कि राजा दशरथ मेरे पास ना आए । आ गए, कोप भवन में चले गए है ।
वहां जाकर क्या हुआ है, आप सब जानते
हो । बहुत कुछ कैकई ने कहा है ।
बहुत कुछ राजा दशरथ ने कहा है ।
आपस में बातचीत हुई है ।
बेचारे राजा दशरथ को अपने शिकंजे में कस लिया है, फंसा लिया है ।
दो वर के लिए आप ने वायदा किया था, वह दो वर मुझे दीजिएगा ।
भरत को राज्य दीजिएगा एवं राम को चौदह वर्ष का वनवास दीजिएगा ।
यह तय हो गया है । राजा दशरथ बहुत कुछ कहते हैं, लेकिन एक बात आज आपने पढ़ी होगी, कैकई बहुत स्पष्ट कहती है,
मैं अपनी सौत का सुख नहीं देख सकती । जो दीक्षा मंथरा ने दी है, उसे भलीभांति उस मंत्र को याद है । मैं अपनी सौत का सुख नहीं देख सकती । पंक्ति साफ लिखी
हुई है कैकई की । मैं अपनी सौत का सुख नहीं देख सकती । देखो, दूसरे का सुख देखना कितना कठिन है, कितना दुखदाई है ? दूसरे का सुख ।
क्या जाता है आपका, लेकिन वह स्पष्ट कहती है मैं सौत का सुख नहीं देख सकती। मैं यह नहीं देख सकती कि वह किसी भी प्रकार से सुखी हो, ऐसा होकर रहेगा ।
आज भगवान श्री वन के लिए प्रस्थान कर गए हैं । बहुत कुछ हुआ है । बहुत उपदेश । इतना समय भी नहीं है आपकी सेवा में कुछ कहने का । हां, जो माता सुमित्रा ने शिक्षा दी है लक्ष्मण जी महाराज को, कल इस वक्त, या दिन में किसी वक्त उसी चर्चा से
आरंभ करेंगें ।
आज मात्र इतना भक्तजनों, भगवान का दूर जाना इस प्रकार का नहीं;
जैसे आप दिल्ली से आए हुए हो, यहां हो, दिल्ली में नहीं हो और जब दिल्ली में होते हो तो हरिद्वार में नहीं होते । भगवान का आना जाना इस प्रकार का नहीं है । भगवान दिल्ली में भी है, तो हरिद्वार में भी है, अमेरिका में भी है, एक ही समय में है ।
कब हमें दूर महसूस होते हैं भीतर विराजमान होते हुए भी, भगवान हमें दूर महसूस होते हैं, और कभी बिल्कुल पास महसूस होते हैं । यह आप हर एक का अनुभव है । कब ? जब भीतर मंथरा नहीं होती तो भगवान बिल्कुल पास होते हैं । और जब भीतर मंथरा आ जाती है तो भगवान पास होते हुए भी बहुत दूर दिखाई देते हैं ।
ठीक इसी प्रकार से भगवान भी अयोध्या से प्रस्थान कर गए हैं, निकल गए हैं । यह हमारी अयोध्या, हमारा अंतःकरण इससे दूर चले गए है । कभी नहीं गए है, लेकिन लोगों को इस प्रकार का लग रहा है । क्यों ?
इस वक्त मंथरा की वृत्ति, काम, क्रोध, लोभ इत्यादि सब विकार इकट्ठे हुए हैं वहां पर। और जहां यह विकार इकट्ठे हो जाते हैं वहां राम नहीं रहते । जहां काम आ जाता है वहां राम नहीं रहते, राम दूर चले जाते हैं ।
पिछले जन्म में मनु जी महाराज प्रभु राम को कहते हैं-
आप मेरे चंद्रमा हो और मैं आपका चकोर । आज कैकई को आकर कहते हैं अरी ! तू तो जानती है तू मेरी चंद्रमा है और मैं तेरा
चकोर । भगवान कहते हैं राजा दशरथ ने चंद्रमा बदल लिया है । इन्हें अब मेरी कोई आवश्यकता नहीं । मुझे यहां से चले जाना चाहिए । चंद्रमा बदल लिया राजा दशरथ ने। मैं था चंद्रमा कभी, तो मैं पुत्र बनकर उनकी गोद में आकर खेला हूं । आज उन्होंने चंद्रमा बदल लिया है । कैकई को चंद्रमा बना लिया है । मेरी आवश्यकता नहीं । इसलिए भगवान प्रस्थान कर जाते हैं ।
हमारे अंतःकरण में जब विकार आ जाते हैं, रहते ही हैं, लेकिन लेकिन जब विकार उछल कूद करने लग जाते हैं, हम विकारों के दास बन जाते हैं, तब ऐसा लगता है भगवान हमसे दूर चले गए हैं । और जब हम निर्विकार होते हैं, तब भगवान बिल्कुल पास ही होते हैं, पास ही रहते हैं, कहीं आते-जाते नहीं है, जैसे हम आते जाते हैं ।
धन्यवाद यहीं समाप्त करने की इजाजत दें ।
-
7:53
Misha Petrov
12 hours agoThe CRINGIEST Moments From The Grammys
1.54K20 -
5:57
China Uncensored
16 hours agoLiving in China Comes With Some Risks
1.16K8 -
12:32
Bearing
22 hours agoAustralian Gender Clinic Caught SECRETLY Transitioning Kids 🤬🤬
1.92K47 -
4:34
AlaskanBallistics
1 day ago $0.07 earnedFosTech Echo Trigger
1589 -
9:10
ariellescarcella
10 hours agoI Asked People To Toss Out An Identity : The Queer Alphabet Is OVER
36 -
27:00
Squaring The Circle, A Randall Carlson Podcast
17 hours agoSPECIAL EPISODE: #037 Randall Carlson Explains The Vital Role of Sacred Geometry in the Modern Age
1.21K2 -
58:35
Trumpet Daily
19 hours ago $3.71 earnedThe Trade War Begins - Trumpet Daily | Feb. 3, 2025
3.11K18 -
47:03
Uncommon Sense In Current Times
17 hours agoArrested For Praying Silently in Western Culture and Convicted
2.05K -
44:19
PMG
15 hours ago $0.01 earnedIn the wake of a tragedy! Finding hope in broken times
400 -
3:40:50
FreshandFit
8 hours agoGirls Get Exposed As THOTS After Demanding Millionaires?!
90.6K102