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Ramayani Sadhna Satsang Bhag-13
परम पूज्य डॉक्टर श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से
((1138))
*रामायणी साधना सत्संग*
*बालकांड भाग-१३*
*अहिल्या का उद्धार*
वापस लौटते हैं । इसी बीच इंद्र देवता महर्षि गौतम का वेश धारण करते हैं, उनका स्वरूप धारण करते हैं, उनका वेश धारण करके बेचारी अहिल्या पहचान नहीं पाती । वाल्मीकि रामायण अहिल्या को निर्दोष कहती है । उसकी भूल नहीं थी । हां, उस वक्त उसने अपना विवेक जो है वह प्रयोग नहीं किया । मेरे पति कभी जिंदगी में इस प्रकार से कामातुर नहीं हुए, और वह भी इस वक्त जिस वक्त उनके स्नान का समय है। मानो उस वक्त ऐसी कोई माया का जाल कुछ बिछा हुआ था, वह यह बात भी सोच ना सकी और संभवतया इसी के लिए उसे सजा भी भुगतनी पड़ी । इसी का फल जो है उसे भुगतना पड़ा ।
पाप करके बाहर निकला है जैसे ही इंद्र, महर्षि गौतम को समझने में तनिक समय नहीं लगा दोनों की गलती, और उन्हें दंडित किया है । दोनों को श्राप दे दिया ।
अहिल्या को भी श्राप दे दिया । उसे जड़ बुद्धि बना दिया उसे । तू की काष्ठ हो जा, पत्थर बन जा, धूली में रह, तुझे कुछ दिखाई ना दे, धूल में रमती रहे अनेक वर्षों तक, हजारों वर्षों तक । जब तक प्रभु राम का आगमन नहीं हो जाता ।
इंद्र को भी श्राप दे दिया है । एक हजार उसके शरीर में छिद्र कर दिए । क्या छिद्र है, छोड़े इस बात को क्या छिद्र हैं । वह कालांतर में क्या होता है । उसको भी दिया जब प्रभु राम के तू दर्शन करेगा, अमुक स्थान पर जाकर, मिथिला में जाकर, जब वह दूल्हा बनकर निकलेंगें, उस वक्त तेरे छिद्र जो है यह आंखें बन जाएंगी । भगवान के दर्शन करके तो तू श्राप से मुक्त हो
जाएगा । आखिर महात्मा महात्मा ही ठहरे। करुणा होती ही है । यह श्राप तब इससे मुक्त हो जाओगे ।
अहिल्या विषयासक्त, कामासक्त होने के कारण उसकी बुद्धि जड़ हो गई । जड़ बुद्धि का जब तक उद्धार नहीं होता, जब तक यह चेतन नहीं हो जाती, तब तक हमारी साधना जो है वह आगे नहीं बढ़ पाती । आज प्रसंग पढ़ा आपने । स्वामी जी महाराज ने लिखा है जैसे ही अहिल्या का उद्धार हुआ, कैसे हुआ उद्धार ?
स्वामी जी महाराज वाल्मीकि रामायण के अंतर्गत बताते हैं, प्रभु राम ने अहिल्या के पांव छुए । रामचरितमानस ऐसा नहीं कहती। रामचरितमानस कहती है महर्षि विश्वामित्र ने जैसे ताड़का को मारने की आज्ञा दी, ऐसे ही अहिल्या के उद्धार के लिए भी कहा । कैसे ?
राम ! अपनी चरण धूलि से इस पत्थर बनी हुई अहिल्या को तार दो । करुणानिधान है वह । महर्षि विश्वामित्र अहिल्या की कहानी सुनाई । पहले यह नहीं कहा, अरे ! त्यक्ता है यह । ऐसा कुकर्म किया हुआ है इसने । छोड़ो इसे, क्या पूछना चाहते हो इसके लिए, कौन है कौन नहीं है, दफा करो इसे । चलो आगे चलते हैं मिथिला । ना । बड़े अच्छे ढंग से अहिल्या की कथा सुनाई है । प्रभु का हृदय जो है वह द्रवित हो गया । ना चाहते हुए भी अपने चरणों से उसे छू दिया है ।
प्रश्न उठता है यह करामात चरणों की है या धूलि की या दोनों की ? रोचक प्रसंग है । पत्थर बनी हुई बिल्कुल नारी की shape है उसकी । पत्थर बनी हुई अहिल्या, भगवान उसे अपने चरणों से छूते हैं । हुकम है गुरु का । आप इसे अपनी चरण धूलि प्रदान करके राम इसका उद्धार कर दो, इसे चेतन बना दो । नंगे पांव तो वह चल ही रहे हैं ।
आगे जाकर जैसे सीता की सखियां लक्ष्मण जी महाराज को, राम को, सिठनीयां सुनाती है, तो कहती हैं ।
कुछ-कुछ लक्ष्मण को बोलती हैं लक्ष्मण भी आगे से हार नहीं मानता । वह उनको कुछ ना कुछ कहता है । यह बातचीत चलती रहती है । बीच की बात है । लक्ष्मण कहते हैं ठीक बात है तुम जो कहती हो मैं मानता जाता हूं ।
लेकिन आप बताओ,
आप कहती हो मेरे राम में कुछ नहीं है, मेरे राम में कुछ नहीं है । वह तो ऐसा ही है । काला कलूटा है । वह हमारी सीता की मेहरबानी है । यह है, वह है ।
मैं सब मानता हूं ।
अहिल्या का उद्धार किसने किया ? बताओ।
सीता की सखियों से लक्ष्मण जी महाराज पूछते हैं, किया ना उद्धार । बताओ किसने किया ?
अरे लल्ला क्या तू सोचता है, यह राम के चरणों की करामात है । चरण तो अयोध्या से चले हुए हैं । क्या इससे पहले उन्हें रास्ते में कोई पत्थर नहीं मिला, क्या किसी का उद्धार किया, कोई नारी बनी ? लक्ष्मण जी चुप । ऐसा तो नहीं हुआ । इससे पहले कोई नारी तो नहीं बनी, नारी तो यही प्रकट हुई है ।
अरे लक्ष्मण जी महाराज यह करामात तेरे राम के चरणों का नहीं है । यह करामात मिथिला की धूलि का है । वह सखियां हार नहीं मानती । यह मिथिला की धूलि इस प्रकार की है । इसके कारण वह पत्थर बनी हुई अहिल्या, नारी धारण कर गई है ।
क्या यह सत्य है ?
भगवान राम से ही किसी ने पूछ लिया महाराज आप ही बताइए यह आपके चरणों की करामात है, यहां मिथिला की धूलि की करामात है । धूलि तो उससे पहले भी थी महाराज । उससे पहले तो किसी को नारी नहीं बनाया । यहां आकर यदि यह नारी बन गई है, तो किस की करामात है ?
भगवान राम बड़ा सुंदर उत्तर देते हैं ।
भाई ! यह ना मेरे चरणों की करामात है, ना ही यह धूलि की करामात है । यह दोनों को मिलाने वाले की करामात है, जिसे विश्वामित्र कहा जाता है । यह मेरे गुरु महाराज की करामात है । यदि उन्होंने चरण और धूलि दोनों को इकट्ठा ना मिलाया हुआ होता तो यह करामात कभी ना हो पाती । तुलसीदास से यदि पूछा जाए महाराज आप नाम के उपासक हो, यह प्रभु राम के चरण क्या है ?
वह तो इतनी सी बात जानते हैं अरे राम शब्द में दो अक्षर है “र और म” यह भगवान के चरण है ।
छोड़ो और बातों को ।
भगवान निर्गुण निराकार है, सगुण साकार हैं। छोड़ो इन बातों को ।
अरे राम राम जपो । यह राम दो अक्षर का जो शब्द हैं यही मेरे राम के चरण हैं, और यदि राम राम प्रेम पूर्वक जपा जाता है तो यही चरण धूलि है । बसस इन दोनों को मिलाने वाला यदि कोई सदगुरु मिल जाता है, महर्षि विश्वामित्र जैसा, तो प्रभु की प्राप्ति हो जाती है । विषयासक्ति खत्म हो जाती है, यह जड़ता समाप्त हो जाती है । चेतनता आ जाती है, और उसके बाद तो परम शांति मिलकर ही रहती है ।
ताड़का को मारा है, अहिल्या को तारा है । किसी ने प्रश्न कर दिया प्रभु राम से,
महाराज कैसा अन्याय है आपका ?
दो महिलाएं अभी तक आपको मिली है रास्ते में । एक को आपने मार दिया और दूसरी को आपने तार दिया । ऐसा क्यों किया ?
प्रभु राम कहते हैं भाई मुझे कुछ ना कहो ।
मैंने तो अपने गुरु की आज्ञा का पालन किया है । एक के लिए कहा उन्होंने मार दो, मैंने मार दिया । दूसरी के लिए उन्होंने कहा तार दो, मैंने तार दिया । मेरा उसमें कुछ नहीं । ऐसा शिष्य होना चाहिए । अपना कृतित्व बिल्कुल नहीं मान रहे ।
मैंने कुछ किया है, बिल्कुल नहीं मान रहे । मैं तो गुरु महाराज के अनुशासन में हूं महाराज। इनसे पूछिएगा, इन्होंने ऐसा क्यों किया । उनसे पूछा गया की आपने ऐसा क्यों करवाया ?
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