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Karmyog || Shri madbhagwad Geeta chapter 3(गीता का अध्याय ३ रैप में)
We present infront of you the summary of third chapter of the bhagwad Geeta in the form of rap, which is called by the karmyog.
ABOUT THIS TRACK
The third chapter of the Gita is about Karmayoga, in which Shri Krishna explains to Arjuna, surrounded by a distracted mind, the difference between Karma and knowledge and how both knowledge and Karma are superior in their own right.
There are times when we feel that there is an internal war between our own choices. What is the root cause of this indecisiveness?
Human wants to achieve the highest possibility but does not want to do hardwork because hardwork is painful, it demands sacrifice. Can joy also come from hardwork?
What's the difference between animals and humans? All of the scientific inventions were done by human, humans are planning to go to the Mars, why not animals are planning the same? This is because humans have evolved their consciousness over a period of time. consciousness induces curiosity which leads to knowledge. A dog is limited to its senses but should humans limit themselves to their senses? The obvious answer is no, that will be a disrespect to the human evolution but it is very unfortunate that most of us our losing touch with our consciousness, we are following the slave mentality, we have forgotten to ask questions, we don't don't want to be criticised, we want to project ourselves as superior
Love is just a 4 letter word and nothing more. There is no meaning attached to it.
Only the fulfillment of lust or some other desire is the motive behind love.
If our actions are backed by selfish desires and not by knowledge, the human civilization will soon perish.
Arjun was fighting the battle of Mahabharata, he desired victory but didn't wanted to fight. He was surrounded by distractions. He continued throwing questions to Sri Krishna. He asked that if everyone follows Krishna then why they indulge in evil practices? Krishna told him that 'when a person is enslaved by its senses, his knowledge gets hijacked and he is not able to see the ultimate truth'
Shri Krishna ji explains the ultimate knowledge of Karmayoga to Arjuna only to calm his distraught mind.
Jai shree krishna 🙏
Adhyay 3
अध्याय है तीसरा और कर्मयोग है नाम सुनो।
लक्ष्य तक ले जाते कर्म क्या इसमें उसका ज्ञान सुनो।।
अर्जुन पूछे प्रश्न, हे श्री कृष्ण दो जवाब मुझको
ज्ञान है बेहतर या है कर्म कहो तात मुझको
कर्म से अधिक बेहतर ज्ञान बताया प्रभु
तो फिर क्यों युद्ध के लिए कह रहे आप मुझको।।
उलझूँ ना जिससे मैं बता दो एक ही बात कोई,
बोले श्री कृष्ण, अर्जुन दुनिया में सुन निष्ठा दो ही,
पहला है सांख्य योग, संबंध है जिसका ज्ञान से, और
दूसरा कर्मयोग, कर कर्म तुझे फल चिंता क्यों ही?
कर्म किए बिना ना सांख्य योग प्राप्ति
कर्म हमेशा चलता, सुन गुण ये प्राकृतिक
मिथ्या विचार है जो करते बस ढोंग कर्मत्याग
है वही श्रेष्ठ पुरुष, जो करता है कर्म मानसिक।
हे अर्जुन, कर्म ना करने से, सुन करना कर्म है बेहतर
अर्जुन कर्तव्य निभा,ये यज्ञ बना कर्मों से बेहतर,
कर पालन संस्कारों का, यज्ञ दिखाए रास्ता तुझको
ईश्वर से जोड़े यज्ञ, समझाएँ कृष्ण, अर्जुन को कह कर।।
बिना कुछ काम किए फल माँगना कहलाए बेईमानी,
अन्न से ही जीवित हैं, सम्पूर्ण जगत और सारे प्राणी,
अन्न की उत्पत्ति वर्षा से, और वर्षा होती यज्ञ से,
कर्मों से यज्ञ सुनो, और कर्म, वेद से मिली निशानी।।
ईश्वर का ज्ञान वेद है, ना कुछ भी है इसके आगे,
सीधा संबंध यज्ञ व ईश्वर में समझाएँ बताके,
सुन कर संवाद और ले ज्ञान, आँखों से देख कर संजय
अर्जुन - श्री कृष्ण वार्तालाप, सारा वृत्तांत सुनाते।।
अध्याय है तीसरा और कर्मयोग है नाम सुनो।
लक्ष्य तक ले जाते कर्म क्या इसमें उसका ज्ञान सुनो × 2
आगे बोले कृष्ण, मेरा ना कोई कर्तव्य
तीनों लोकों का स्वामी, फिर भी करता हूं मैं कर्म
जो मैं ना करूं कर्म, तो दुनिया हो जानी नष्ट
स्वयं मैं श्री कृष्ण भी, निभाता हूं मैं धर्म।
जो ज्ञानी है कर्मों से ना पड़े गलत प्रभाव,
हर व्यक्ति के कर्मों का होता गुणों से जुड़ाव,
गुण ही कराते कर्म, ला सौंप सारे दुःख तू मुझको,
हे अर्जुन, युद्ध कर सारे भुला कर भाव।।
सुख दुःख और मोह छोड़, कर्मों के बंधन खुद टूटेंगे
ना फंस इन्द्रिय जाल में, प्यार द्वैष भी खुद छूटेंगे
धर्म की खातिर बेशक मर जाना, ना धर्म बदलना
अपना कर्तव्य निभा अर्जुन, तू अपना कर्म बदल ना।
अर्जुन बोले, हे कृष्ण , क्यों बने मनुष्य पाप का भोगी
करते अनुसरण आपका, फिर क्यों ना सब बनते जोगी
समझाते कृष्ण, काम और क्रोध हमेशा बढ़े, रुके ना
ना वश में जिसके क्रोध और काम, वही सुन पाप का भोगी।।
सुन अर्जुन धूल शीशे पर हो तो चेहरा साफ दिखे ना
गर वश में काम क्रोध ना होते, तो फिर पाप दिखे ना
आते ही वश में इनके, चल पड़ते पाप राह पर,
गुण सारे छिप जाते, जैसे है आग में राख दिखे ना।।
हे अर्जुन, इन्द्रिय वश में कर, और काम - क्रोध दे मार
है सारा खेल आत्मा का, अर्जुन समझ ये सार
बुद्धि से मन कर वश में, मन से इन्द्रियां जुड़ीं हैं
और पहुंचा आत्मा तक, श्री कृष्ण देते कर्मयोग का सार।।
अध्याय है तीसरा और कर्मयोग है नाम सुनो।
लक्ष्य तक ले जाते कर्म क्या इसमें उसका ज्ञान सुनो।।
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