Pravachan Shree Vishwamitra ji Maharaj

1 year ago
6

परम पूज्य डॉ विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से
((1051))

*श्री भक्ति प्रकाश भाग ५६८(568)*
*प्रारब्ध (होनी बहुत प्रबल है)*
*भाग २*

इसमें ऐसा मत समझिएगा, हम गृहस्थ हैं इसलिए हमें थोड़ी छूट
होगी । नहीं, आप अपने किए को यदि परिवर्तित करना चाहते हो, परिवर्तित कर सकते हो । इसमें कोई संदेह नहीं, पर आपकी भक्ति बहुत प्रगाढ़ होनी चाहिए, अनन्य भक्ति, निष्काम भक्ति, आप की होनी चाहिए । तो परमात्मा को यह सब कुछ करने में कोई दिक्कत नहीं होगी । अन्यथा देवियों सज्जनों हम सब के लिए, जैसे हम सब हैं, हम सब के लिए प्रारब्ध बहुत प्रबल है ।आज राजा राम भी कुछ परिवर्तन नहीं कर सके, यह दर्शाने के लिए की होनी बहुत प्रबल है ।

एक लकड़ी का टाल है । जहां लकड़ी बेची जाती है । एक साधु अपनी चिलम में कोयला डालने के लिए ऐसी चिलम पीते है ना । साधु लोग तो उसमें कोयला डालते हैं । कोयला चाहिए था, कोयला मांगने के लिए उस व्यक्ति के पास गया । एक बालक बैठा हुआ था वहां । कहा बाबा थोड़ी देर इंतजार करो इस सारे टाल को आग लगने वाली है जितनी मर्जी आग ले लेना, जितने मर्जी कोयले ले
लेना । देखते ही देखते साधक जनों सारी की सारी लकड़ी जलकर राख हो
गई । मानो कोयले ही कोयले हैं । साधु कोयला तो उठाना भूल गया । उस बालक के पास गया जाकर कहा, तुम्हें पता था कि इसे आग लगने वाली है । तूने पहले प्रबंध क्यों नहीं किया बचाव का । क्यों Fire brigade इत्यादि नहीं बुलाए ? क्यों पानी का प्रबंध नहीं किया ? ताकि यह Disaster ना होता । बालक कहता है, महात्मन-क्षमा करें । इसका उत्तर मैं नहीं दे पाऊंगा । अमुक नदी के किनारे मेरे गुरु महाराज बैठे हुए हैं। उनके पास जाओ वह तुम्हें उत्तर देंगे । पूछता पूछता साधु उनके पास पहुंच गया है । उन्हें जाकर सारी घटना सुनाता है । उस संत ने कहा महात्मन थोड़ी देर इंतजार करो । यह नदी भी देख रहे हो । इतनी सारी नौकाऐ खड़ी है सजी-धजी है । राजा आएंगे, उनका परिवार आएगा, मंत्री महोदय इत्यादि भी आएंगे । यह नावे चलेंगी मध्य तक ही मुश्किल से पहुंचेगी सारी की सारी नौकाऐ डूब जाएंगी । एक और अचंभित करने वाली बात सुन ली । ऐसा ही हुआ देवियों सज्जनों राजा साहिब आए हैं, उनका सकल परिवार आया है । मानो पूरे का पूरा परिवार नष्ट होने जा रहा है राजपरिवार । आगे कोई नहीं । पूरे का पूरा परिवार है ।क्षकुछ एक मंत्री भी है। दो-चार-पांच जितने भी नौकाऐ सजी हुई थी, सब में बैठ गए । सब के सब खत्म ।

साधु ने संत महात्मा को फटकारा कैसे संत महात्मा हो आप ? आपको पता था कि यह घटित होने वाला है । आपने राजा को रोका क्यों नहीं । पूरे का पूरा परिवार आपने नष्ट करवा दिया । पापी हो आप जो कुछ भी वह साधु अपनी समझ के अनुसार कह सकता था, कहा । साधु के कंधे पर हाथ रखा कहा- महात्मन एक सप्ताह के बाद तेरी मृत्यु है। जहां बैठे हो दाहिने हाथ पर लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर एक पेड़ है । उस पेड़ के नीचे तेरी मृत्यु होगी । एक सप्ताह के बाद । रोक लो तुम । मेरे से पूछते हो ना क्यों नहीं रोका ? बालक से पूछते थे की क्यों नहीं रोका । तुझे एक सप्ताह पहले बता रहा हूं । एक सप्ताह के बाद तेरी मृत्यु उस पेड़ के नीचे 10 km towards right तुम अपनी मृत्यु से अपने आप को बचा कर देख । बहुत अच्छी बात है । टालूंगा इसे, इस दिशा में मृत्यु होगी Opposite direction में 10 किलोमीटर 15 किलोमीटर एक सप्ताह में जितना चल सकता था चला गया । निश्चिंत होकर बैठ गया आज अंतिम दिवस । एक पेड़ के नीचे निश्चिंत होकर विश्राम कर रहा
है । किसी प्रकार की कोई चिंता नहीं वह संत झूठा । मैंने अपनी मृत्यु टाल दी । टल जाएगी ।

कहते हैं साधक जनों विश्राम करते हुए वहां पर कुछ डाकू डकैती करके आए । अंधेरा था बटवारा करने लग गए । थोड़ा सा सवेरा हुआ देखा एक व्यक्ति यहां है और हमारे अतिरिक्त जिसने हमें देख लिया है । यह पुलिस को शिकायत करेगा । यह हमें पकड़वा देगा, इत्यादि
इत्यादि । उसे अपने घोड़ों पर बिठाया, बिठाकर आप सच मानो यह मनगढ़ंत किसी कहानीकार की कहानी नहीं है, जो हर एक के साथ घटित होता है वह है । ठीक उसी पेड़ के नीचे आकर उसे धड़ाम से नीचे घोड़े से गिराया । उसी पेड़ के नीचे उसकी मृत्यु हो गई । होनी को कौन टाल सकता है । होनी को वही टाल सकता है जिसने अपनी प्रारब्ध रची
है । और प्रारब्ध आप कहते हो ना, अपनी प्रारब्ध के बनाने वाले आप
हो । अपनी प्रारब्ध को बिगाड़ने वाले आप हो, अपनी प्रारब्ध को परिवर्तित करने वाले भी आप ही हो । बशर्ते कि कुछ आप उपाय करो बातों से नहीं । प्रगाढ़ भक्ति की आवश्यकता है ।

सीताराम सीताराम सीताराम कहिए
जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिए ।।
तो यहीं समाप्त करने की इजाजत दीजिएगा । धन्यवाद ।

Loading comments...