July 11, 2023

1 year ago
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परम पूज्य डॉ विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से।
((1039))

*श्री भक्ति प्रकाश भाग ५५६(556)*
*जैसी करनी वैसा फल(उपदेश मंजरी)*
*“कर्म करो ऐसे भले जैसे फल की मांग,*
*इक्षु रस की मधुरता मिले ना बो कर भांग”*
*भाग-१*

इसके साथ ही उपदेश मंजरी के प्रसंग समाप्त होते हैं । चर्चा कर्म की चल रही थी। कर्म कितना बलवान है ।कर्म अति बलवान। स्वामी जी महाराज इस के बल को देख कर कहते हैं
“कर्म करो ऐसे भले जैसे फल की मांग,
इक्षु रस की मधुरता मिले ना बो कर भांग”

सीखना सिर्फ यही है, परमेश्वर से डरने की जरूरत नहीं । देवियों सज्जनों शैतान से भी डरने की जरूरत नहीं, अपनी करनी से डरने की जरूरत है । कितना बलवान है कर्म । बंदा बंदा जानता है परमेश्वर
सर्वसमर्थ है, सर्वशक्तिमान है, मानो सब कुछ करने में समर्थ है । कुछ भी कर सकता है । यहां तक भी कहा जाता है कि उसका विधान शास्त्र उससे बड़े नहीं हैं, हम ऐसा मानते हैं, वह ऐसा नहीं मानता ।

अपने विधान को उच्च मानता है । विधान, शास्त्र इनको, अपने से बड़ा मानता है ।
मानो इनकी इज्जत करता है परमात्मा । इसी ढंग से कर्म की भी । कर्म सिद्धांत किस प्रकार का है ।

परमेश्वर सर्व समर्थ होते हुए भी देवियों सज्जनों ऐसा तो नहीं कर सकता,
किसी ने शुभ कर्म किया है तो उसे फल अशुभ दे दे । है ना, वह नहीं कर सकता ।
सर्व समर्थ है, सर्वशक्तिमान है, जो चाहे कर सकता है । लेकिन किसी ने कोई भला काम किया है, उसके बदले उसे दुख दे, ऐसा वह नहीं कर सकता ।
और किसी ने पाप कर्म किया है, तो उसके बदले में उसे सुख दे दे, ऐसा भी वह नहीं करता ।
तो स्पष्ट है ना कर्म फल कितना बलवान है। यह परमात्मा का विधान ही है देवियों सज्जनों ।
दुख देकर सुख की इच्छा रखनी यह ईश्वर का विधान नहीं है ।

आप अपने परिवार को दुखी रखते हो, परिवार आप के कारण दुखी है, दफ्तर जहां आप काम करते हो, वह आप से दुखी हैं, और बदले में आप सुख की अपेक्षा करोगे, यह परमात्मा का विधान नहीं है ।
वह आपकी भक्ति, आपकी सेवा स्वीकार नहीं करेगा । यह परमेश्वर का विधान है । इसका वह पूरा आदर करता है । अनुभव साक्षी है, कि ऐसा वह करता है, ऐसा होता
है ।

दुख देकर किसी को भी, किसी का दिल जला कर, जहां आपकी इच्छा है कि इसका दिल जले, इस प्रकार से यदि आपने किसी का हृदय जलाया है, किसी को दुख दिया है, किसी को तड़पाया है, उसके बदले में आपको सुख मिल जाए,
यह परमात्मा का विधान नहीं है ।
फल बदल नहीं सकता परमात्मा । तो यही लगता है कि फल बहुत बड़ा है । लेकिन फल भी तो कर्म के अधीन है । इसलिए यही स्वीकार करना होगा कर्म बहुत बलवान है । अतएव
“कर्म करो ऐसे भले जैसे फल की मांग” स्वामी जी महाराज जी की यह पंक्तियां सदा याद रखने योग्य ।

आइए साधक जनों कुछ एक दृष्टांतो के माध्यम से देखें,
“जैसी करनी वैसा फल,
आज नहीं तो निश्चिय कल”
कोई दो राय नहीं इसमें ।
फल तरह तरह का है । एक तो इस प्रकार का आज रात आपने कोई गंदी चीज खा ली, हो सकता है मध्यरात्रि ही आपको उठना पड़े उल्टी के लिए, vomiting के लिए, दस्त लग जाए । यह उस कर्म का तत्काल फल
है । यह तो थोड़ी देरी लग गई । ऐसा भी होता है कभी ऐसी चीज भी खाई जाती है की तत्काल Vomiting हो जाती है, कर्म का तत्काल फल । आज आप ने परीक्षा दी तीन महीने के बाद उसका परिणाम निकलेगा । वह कर्म फल तीन महीने के बाद मिलने वाला है । फल की अवधि देवियों सज्जनों परमेश्वर के अधीन ही है । कब, कहां, क्या, कितना फल देना है, सब उसके अधीन है ।

एक पौधा तीन एक महीने के बाद ही कुछ खाने को देता है ।
दूसरा एक साल के बाद देता है,
तीसरा पांच साल के बाद देता है,
सेब का पौधा है दस साल के बाद फल खाने को देता है ।
यह तो यहां की चीजें हो गई ।
कुछ ऐसी चीजें भी तो होगी जिसका फल इस जन्म में संभव नहीं । तो फिर अगला जन्म लेना पड़ेगा । और यह सत्य है, यह स्पष्ट दिखाई देता है हमें । तो यही मानना पड़ेगा कर्म सिद्धांत के अंतर्गत
“जैसी करनी वैसा फल
आज नहीं तो निश्चय कल”
कल अगला जन्म भी हो सकता है, उससे अगला जन्म भी हो सकता है ।

परमेश्वर सजा नहीं देता देवियों सज्जनों । उसके विधान में अत्याचार, अन्याय नहीं है। वह मात्र हमारे लिए व्यवस्था करता है, जो किया है उसके फल का भुगतान इसका हो जाए, ताकि इसका कर्म कटे । यह कर्म बोझ उठाकर रखेगा, तो इसका जन्म मरण का चक्र छूटेगा नहीं ।
यह सत्य है देवियों सज्जनों हम सब अपने अपने कर्म भोग भोगने के लिए, फल भोगने के लिए यहां आए हुए हैं । या यूं कहिएगा हम सब अपने कर्मों का ऋण उतारने के लिए यहां आए हुए हैं । जो हमारे सिर पर था, उसे उतारने के लिए यहां आए हैं ।
उतर गया तो यही हिसाब किताब खत्म ।

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