Pravachan Shree Vishwamitra ji Maharaj

1 year ago
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परम पूज्य श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से
((1036))

*श्री भक्ति प्रकाश भाग ५५३(553)*
*उपदेश मंजरी ( शिष्टाचार)*

धुन :
*दे दो राम, दे दो राम। मीठी वाणी दे दो राम ।।*
*दे दो राम, दे दो राम। मीठी वाणी दे दो राम ।।*

*दे दो राम, दे दो राम। दे दो राम, दे दो राम।*
*दे दो राम, दे दो राम। मीठी वाणी दे दो राम ।।*

*उपदेश मंजरी के अंतर्गत एक एक करके सभी प्रसंग खत्म हुए हैं । आज अंतिम प्रसंग था शिष्टाचार । अनेक सारे प्रसंग साधक जनो ! उपदेश मंजरी के अंतर्गत आप जी ने पढ़े हैं । सब के सब अनुकरणीय है। जीवन में उतारने योग्य । आज स्वामी जी महाराज ने अंतिम पंक्तियों में फरमाया है, मिलजुल कर कर्म करना, हरि गीत गाते रहना शिष्टाचार है । एक शिष्ट व्यक्ति का आचरण किस प्रकार से होना चाहिए उसे शिष्टाचार कहा जाता है । अभी आप सब ने मिलकर श्री अमृतवाणी जी का पाठ किया है, भक्ति प्रकाश का भी मिलकर पाठ किया है । स्वामी जी महाराज ने जो लिखा है देवियो सज्जनो ! वह सब कुछ करके दिखाया है । यदि कहा है कि मिलकर कर्म करना चाहिए, हरि गीत गाने चाहिए तो वह करके दिखाते हैं ।*

*अमृतवाणी का पाठ सब मिलकर करते हैं, भक्ति प्रकाश का पाठ सब मिलकर करते हैं, रामायण जी का पाठ भी सब मिलकर करते हैं । यह शिष्टाचार है । अन्य बातें भी हमसे कही हैं लेकिन शिष्टाचार का अंत तो इन्ही पंक्तियों से किया है । होना भी चाहिए साधक जनो ! जहां मेल मिलाप है, एकता है वहीं मां लक्ष्मी का वास है । जहां मनमुटाव, भेदभाव जाति के, ऊंच-नीच के, अमीरी गरीबी के, बड़े छोटे के, नए पुराने के भेद खड़े हो जाते हैं, वहां कलह क्लेश भी जीवन में उसी मात्रा में, जीवन में, परिवार में, संस्था में, उसी मात्रा में प्रविष्ट हो जाते हैं । जो मिल जुल कर रहते हैं, अनेक होने पर भी एक होकर रहते हैं, उसी को एकता कहा जाता है। वहीं बरकत है साधक जनो ! वहीं शांति है ।*

मां लक्ष्मी कहती हैं, जहां मतभेद शुरू हो जाते हैं, मतभेद क्या है ? मति में भेद‌। साधारण मति में भेद, मेरी मति जो कहती है वही सही है । सब यही सोचें तो इसी को मतभेद कहा जाता है । कहने वाला तो साधक जनो ! एक ही होना चाहिए । मानने वाले अनेक होने चाहिए तो ही घर संसार सुखी एवं शांत रह सकता है । परिवार कहिए, कुछ भी कहिए, जहां हर कोई यह चाहे की मेरे मन की ही बात हो, जो मैं सोचता हूं, सोच रही हूं, वैसे ही हो, मेरी बुद्धि के अनुसार ही सबको चलना चाहिए, मां लक्ष्मी कहती हैं मेरा वास वहां पर नहीं रहता । वहां अलक्ष्मी का वास हो जाता है । कलह, क्लेश, अशांति का वास हो जाता है । घर घर में भी यही है, परिवार, देश, समाज, संस्था, जहां भी इस कलह का प्रवेश हो जाता है, वहीं अशांति का आगमन भी हो जाता है । साथ ही साथ जीना बहुत कठिन । कट रही है बस, इसके अतिरिक्त जीने का जो मज़ा है, जीवन का जो मज़ा है, वह मज़ा नहीं रहता ।

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