Pravachan Shree Vishwamitra ji Maharaj

1 year ago
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परम पूज्य डॉक्टर विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से
((1029))

*श्री भक्ति प्रकाश भाग ५४६(546)*
*सेवक और सूरमा(उपदेश मंजरी)*
*भाग-२*

ऐसा सेवक साधक जनों, ऐसा नौकर भगवद रूप बन जाएगा । परमात्मा उसे अपना रूप दे देगा, परमात्मा उसे अपने गुण दे देगा । तो हम नौकर किसके हुए परमात्मा के एवं परमात्मा के संबंधियों के | जैसे विवाह होते ही कोई सास बन जाती है, कोई ससुर, कोई ननद, कोई देवर, कोई जेठानी उससे पहले नहीं थी । कब बने जब वह देवी पति की हो जाती है | जब हम परमेश्वर के हो जाते हैं तो हमारे सारे के सारे संबंध परमेश्वर के साथ और हमारा कोई संबंध नहीं । क्योंकि हम परमात्मा के हो चुके हुए हैं । हम परमात्मा के नौकर हैं । अतएव हमारा संबंध परमात्मा के नाते सबसे । आप इन्हें परमात्मा का साकार रूप समझो सेवा करो । इन्हें परमात्मा समझो सेवा करो । सास ससुर समझोगे तो गलतियां होंगी । वास्तविकता समझोगे तो फिर गलतियों की गुंजाइश नहीं। सत्य समझोगे तो गलतियों की गुंजाइश
नहीं | बहू के साथ व्यवहार में गलतियां हो सकती हैं । लेकिन परमात्मा के रूप देवी देख के गलती होने की संभावना नहीं |

हम सब सेवक बैठे हुए हैं । नौकर बैठे हुए हैं। दो शब्द आए सेवक एवं स्वामी । टटोलना चाहिए देवियों सज्जनों, अपने भीतर हमारे अंदर सेवक भावना ज्यादा है या स्वामी भावना ज्यादा है | एक में दो भी हो सकती हैं । प्राय होती हैं । प्राय यही होती है। सेवक भावना तो घटती घटती घट जाती है, स्वामी भावना बढ़ती बढ़ती बढ़ जाती है |

जब हम चाहते हैं, एक सफाई करने वाला व्यक्ति, यह चाहता है कि मेरी चले जो मैं कहूं वही हो सब कुछ । सब कुछ उसके अनुसार हो यह भावना विकृत होती होती ऐसी भी हो जाती है, सब कुछ मैं ही करूं और किसी को मौका ना मिले । तो सोचो अंदर क्या काम कर रहा है ? सेवकाई काम कर रही है या स्वामित्व काम कर रहा है । यह सेवकाई नहीं रहती | तनिक सोच कर देखो । कोई एक व्यक्ति हो ऐसा किसी को तो करना ही पड़ता है, कोई एक हो जहां दो हो जाएं क्या हालत होती होगी और जहां अनेक ऐसे हो जाएं तो क्या हालत होती होगी ? परमात्मा ऐसी दुर्दशा से बचाए ऐसी सेवकाई से बचाए । Practical बातें हैं ना आपकी सेवा में अर्ज की जा रही हैं । आदमी इन्हीं से सुरक्षित रहे तो फिर स्वामी जी की बातें समझ में आएगी। स्वामी जी महाराज तो बहुत ऊंची ऊंची बातें लिखते हैं । बड़ी ऊंची ऊंची बातें लिखी हैं, उन्होंने । पर हम अभी छोटी बातों से ही नहीं निकले, उन्हीं में फंसे हुए हैं, उलझे हुए हैं उसी से निकल नहीं पाते ।

संभवतया कठिन बात है | मेरा हुक्म चले, मुझे किसी को पूछने की जरूरत ना पड़े, लोगों का फर्ज बनता है कि मुझे बताएं, तो काहे का सेवक वह रह गया । वह तो सेवक नहीं | जिसके अंदर यह भावना आ जाए He or she supposed to tell me कहां सेवकाई यह रह गई । यह सेवकाई नहीं है | इसीलिए स्वामी जी महाराज ने कहा है सेवक बनना बहुत कठिन काम है । बड़ी कठिन चीज है यह सेवकाई । कुछ भी कहो पहचान तो हमारी यही है । हमें बनना तो यही है | कितनी मौज है देवियों बड़ी सरकार की नौकरी में । आज एक युवक की चर्चा शुरू कर लेते हैं । कल राम नाम के बहुत बड़े जापक गुरु जी का प्रकाश दिवस है। बधाई के साथ जो बाकी चीजें रह जाएंगी चर्चा कल कर लेंगे आज शुरू करते हैं |

एक युवक सुडौल शरीर है, सुशील है, सभ्य है शिक्षित है । अनेक सारे गुणों का मालिक है । गरीब घर से है । माता पिता है, पुत्र हैं एक जिद पकड़ी है, नौकरी करूंगा तो सबसे बड़े की करूंगा | कैसी विचित्र ज़िद है । माता पिता समझाते हैं । पुत्र हमारे राज्य में इस वक्त सबसे बड़ा राजा है । हमारे पास उसकी कोई जान पहचान नहीं है । हम प्रजा है और प्रजा में भी बहुत हल्की जाति के। हमारी Approach नहीं वहां | हम राजा के दरबार में जा नहीं सकते । कोई ऐसा भी नहीं जो हमें पहुंचा दे । जिद छोड़ नौकरी कर । घर पर बेकार रहना अच्छा नहीं । और कुछ ना हो देवियों सज्जनों बेकार आदमी का मन तो बिगड़ेगा ही बिगड़ेगा, वाणी बिगड़ेगी मन बिगड़ेगा कोई बचा नहीं सकता |

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