|तुलसी विवाह क्यों कराया जाता है| |भगवान शालिग्राम और तुलसी का विवाह कैसे हुआ?|कैसे वृंदा बनी तुलसी

1 year ago
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तुलसी विवाह हिंदू धर्म में एक प्रमुख पर्व है जो श्रीवल्लभ व्रत नामक प्रतिवर्ष मार्गशीर्ष मास की शुक्ल द्वादशी तिथि को मनाया जाता है। इस पर्व के दौरान तुलसी के पौधे का विवाह लीला के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व तुलसी माता की पूजा एवं मन्दिरों में उनकी स्थापना के लिए मनाया जाता है। तुलसी विवाह के पीछे कई पुराणिक कथाएं और महत्वपूर्ण धार्मिक आदिकांड हैं।
तुलसी विवाह के पौधे के विवाह संस्कार को महीने से पहले आयोजित किया जाता है। तुलसी के पौधे के लिए एक छोटा मंदप बनाया जाता है जिसमें विवाह के लिए तैयार किया गया तुलसी पौधा स्थापित किया जाता है। तुलसी के पौधे के लिए एक ब्राह्मण पंडित बुलाया जाता है जो विवाह सम्पन्न करता है। विवाह के बाद, तुलसी माता को विवाहित भगवान विष्णु के अवतार लोर्ड श्रीकृष्ण के साथ पूजा जाता है।
इस दिन लोग तुलसी माता की पूजा-अर्चना करते हैं और उन्हें सिंदूर, माला, चूड़ा और सुहाग सहित सजा कर प्रसाद के रूप में चढ़ाते हैं। उन्हें बच्चों के विवाहों एवं शादी शुदा जीवन में सुख और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
तुलसी विवाह का महत्व भी धार्मिक दृष्टिकोण से उच्च है। इसे मनाने से तुलसी माता प्रसन्न होती हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। तुलसी विवाह का आयोजन नगरों और गाँवों में धूमधाम से किया जाता है।
यह पर्व धर्मिक, सांस्कृतिक और परंपरागत महत्व के साथ मनाया जाता है और इसका मुख्य उद्देश्य तुलसी माता की पूजा करना, उनके प्रति श्रद्धा और समर्पण प्रकट करना है।

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