Pravachan Shree Vishwamitra ji Maharaj

1 year ago
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परम पूज्य डॉक्टर श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से
((1022))

*श्री भक्ति प्रकाश भाग ५३९(539)*
*परमात्मा का स्मरण- सिमरन*
*भाग ३*

अभी आप जी से अर्ज की जो परमात्मा की चरण शरण में रहते हैं, जिन्हें यह विश्वास है, मानो परमात्मा को विश्वास यह दिलाना होगा कि मैं आपकी चरण शरण में हूं । मुझे अपने किसी बल पर भरोसा नहीं है । जहां तक आपका अपना बल किसी भी प्रकार का, देवी बना रहेगा, परमात्मा के हाथ आपकी रक्षा के लिए नहीं उठेंगे । बहुत पक्के हैं । परमात्मा, दयालु है, कृपालु है, करुणावान है, लेकिन बहुत पक्के हैं । मत भूलिएगा इस बात को । जब तक लेश मात्र भी आपके अंदर यह रहेगा, मेरा बल है बाकी, तब तक परमात्मा के हाथ आपकी रक्षा के लिए उठेंगे नहीं ।

हां, निस्साधन हो जाओ, निस्सहाय हो जाओ, निर्बल हो जाओ, निर्धन हो जाओ, यह आश्वासन परमात्मा को दिलाओ की जो मैं कह रहा हूं, वह मैं हूं । यदि परमेश्वर इस बात पर आश्वस्त हो जाते हैं, तो फिर आपको कुछ करना शेष नहीं रहता । सब कुछ राम अपने आप करते हैं ।

एक बकरी की याद आती है । आज जंगल में जाकर रास्ता भूल गई है । मानो सभी की सभी बकरियां, भेड़े, जितनी भी थी, वह कहीं आगे निकल गई । पत्ते खाती रही, अकेली रह गई । संध्या का समय हो गया
है । सायंकाल, मानो अंधेरा होने ही वाला
है । नदी पड़ी रास्ते में । कहां जाऊं अब, मुझे पता नहीं । शेष बकरियां किस घाट से पार गई है, मुझे कोई बोध नहीं है । मैं किस घाट से जाऊं, मुझे कोई पता नहीं है । खोज रही है । परमेश्वर की कृपा एक शेर का पंजा दिखाई दे गया । उसी पर बैठ गई । शेर के पंजे पर यह बकरी बैठ गई है । सारी रात बिता दी है । सुबह हो गई । नदी पार
करूंगी । हिंसक पशुओं ने आना शुरू कर दिया है, जल पीने के लिए । एक आता है, देखता है बकरी अकेली है, वाह मौज हो
गई । शिकार मिल गया । पानी बाद में पीयेंगे, पहले इसे खाते हैं । एक ही बात कहती है बकरी, खाने से पहले मुझे यह देख लो कि मैं किसकी शरण में बैठी हूं ।
बसस हिंसक पशु वहीं से मुड़ जाते हैं । पानी पिया और चलते बने ।
शेर, जिसके पंजे का आश्रय लिया है, देवी वह आ गए हैं । अरे बकरी , तू किसके सहारे पर निर्बल बैठी है यहां । तेरे सहारे, तेरे पंजे पर बैठी हूं । प्रसन्न हुआ । शेर प्रसन्न हुआ । यदि शेर जैसा व्यक्ति, व्यक्ति कहो, पशु कहो, हिंसक पशु, यह बात सुनकर प्रसन्न हो सकता है, तो परमात्मा की तो बात ही क्या है । इतना ही तो कहा है ना, पहले देख लो, मैं किसकी चरण शरण में हूं ।

“सुख सपना दुख बुदबुदा, दोनों है मेहमान”
ऐसा व्यक्ति क्या कहता है
“सुख सपना दुख बुदबुदा, दोनों है मेहमान,
सबका आदर कीजिए, जो भेजे भगवान”
काहे की परवाह पड़ी है, सिर पर बैठा है
ना । देखो ना मैं किसकी चरण शरण में बैठा हुआ हूं ।

ऐसे साधक को साधक जनो रक्षा के लिए संसार के पास जाना नहीं पड़ता, कठिन काम है, बहुत कठिन काम है, बहुत ही कठिन काम है ।
हम use to तो संसार में ही जाने के हैं । संसार की चरण शरण में जाना हमारा स्वभाव बना हुआ है और यहां कहा जाता है कि परमात्मा की चरण शरण में जाइएगा ।

सागर, समुद्र में छोटी लहरें भी उठती हैं, बड़ी लहरें भी उठती हैं । अंदर से कितना उदास है, हम नहीं जानते । बहुत उदास है । बहुत अशांत है । छोटी लहरों के माध्यम से, बड़ी लहरों के माध्यम से, किनारों पर जाकर टकराता है । अपने ही किनारे हैं उसके । अपनी ही limit, जो सागर की limit है, साइड पर, उसे ही किनारा कहा जाता है
ना । नदी की जो limit है उसी को ही किनारा कहा जाता है । इस पार उस पार दो किनारे । अपने किनारों पर जाकर टक्करें मारता है, वापस लौटता है । हमें तो यही महसूस होता है बड़ा सुखी है, मोतियों का भंडार है ।

आज किसी ने प्रश्न पूछ लिया सागर से -
बंधु भगवान श्री विराजमान है तेरे भीतर । शैया पर विराजमान हैं नारायण भगवान तेरे भीतर । तू उदास क्यों ? उदास तो वह हो, जो परमात्मा से दूर है ।
तू उदास क्यों है ? शेष शैया पर विराजमान परमात्मा तेरे भीतर विराजमान है । तू उदास क्यों है , दुखी क्यों है, अशांत क्यों है ?
दहाड़ दहाड़ कर, इतने उछल उछल कर, अपनी लहरों को तू किनारों पर ले जाकर, उनसे टक्करें मारता है । क्या बात है ऐसी उदासी वाली ? बहुत सुंदर उत्तर देता है‌ सागर कहता है - दोष उनका नहीं मेरा है । मैंने अपने अहंकार के कारण कभी भीतर उनसे संपर्क ही नहीं किया । वह भी प्रश्न पूछ सकता है, सागर भी प्रश्न पूछ सकता है, तेरे अंदर भी तो आनंद स्वरूप परमात्मा विराजमान हैं, प्रेम स्वरूप परमात्मा विराजमान है, शांति स्वरूप परमात्मा विराजमान है, फिर तू अशांत क्यों रहता है, तू दुखी क्यों रहता है, तू दूसरों से द्वेष, वैर इत्यादि क्यों रखता है, तू अपने अंदर बदले की भावना क्यों रखता है ?
तेरे अंदर तो प्रेम स्वरूप परमात्मा विराजमान हैं, तेरे अंदर शांति स्वरूप, आनंद स्वरूप परमात्मा विराजमान हैं, फिर तू ऐसा क्यों है ?

समस्या दोनों की एक ही है । बंदा भी कभी भीतर नहीं गया । उसे बाहर ही जाने की आदत है, जैसे सागर को । अपनी अशांति को देवी प्रकट करने के लिए, अपने किनारों के साथ ही टक्करें मारता है । अपनी अशांति को व्यक्त करने के लिए सागर, जैसे हम करते हैं । स्रोत तो भीतर बैठा हुआ है । जीवन साधक जनो कैसा भी जीवन व्यतीत करो, सिमरन ना छूटे ।

परमात्मा का विस्मरण सबसे बड़ी विपत्ति है, सबसे बड़ा पाप है । यह क्षण, पापी क्षण, हमारे जीवन में ना आए ।
सदा परमेश्वर से जुड़े रहिएगा, सिमरन के माध्यम से । बहुत ऊंची चीज है देवियो सज्जनो यह ।
सिमरन करते रहिएगा ।
अगले रविवार को तो नहीं, उससे अगले रविवार इस चर्चा को और आगे जारी रखेंगे ।
परमेश्वर से संपर्क रहे, सिमरन के माध्यम से,
उदासी मिट जाएगी, अपार हर्ष, हर वक्त प्रसन्न ।

कुछ एक और उदाहरणे देखेगें । व्यक्ति प्रसन्न ऐसा कैसा रहता है । परमात्मा के साथ जुड़ो, तत्काल सहनशीलता आती है, जितनी परमात्मा के पास है । भक्तजनों सुनो, जितनी परमात्मा के पास है, वह अपने पास नहीं रखता । एक दफा जुड़ कर तो देखो । वह अपना सर्वस्व आप पर लुटाने को तैयार है । एक बार उसके हो कर देखो । उसके साथ जुड़ कर देखो ।
Connect yourself tightly.
सब कुछ जो कुछ है उसके पास, अपने पास कुछ भी रखना नहीं चाहता । रख ही नहीं सकता । सब कुछ आपको देता है ।
सहनशीलता देता है,
प्रेम देता है, क्षमा देता है,
दया देता है, करुणा देता है, सब कुछ देता
है ।
समता देता है ।
तभी तो कहते हैं ना
“परमेश्वर से हुई ममता, तो परमात्मा देता है समता एवं संसार से असंगता” ।
यही चाहिए है ना, बस जीवन सफल हो
गया ।
तो ज़रूरत किसकी है, परमेश्वर से ममता जोड़ने की ।
तू मेरा राम मैं तेरा राम,
तू मेरा मैं तेरा राम,
तू मेरा मैं तेरा राम ,
मैं तेरा हूं, तू मेरा है बससस ।

तो साधक जनो यहीं समाप्त करने की इजाजत दीजिएगा । हार्दिक धन्यवाद आप सबका । कल करवाचौथ की जिन साधको को जिन देवियों को बधाई नहीं दे सका, आज देता हूं । दीपावली की भी बहुत-बहुत बधाई । आने वाली है । खूब तैयारियां कर रहे होंगे आप, खूब तैयारी कीजिएगा । हर्षोउल्लास । हम जैसा भाग्यवान कौन होगा और कुछ हो ना हो हमारे पास परमात्मा है, बस पर्याप्त है । ऐसा व्यक्ति जो परमेश्वर के साथ जुड़ा हुआ है, वह इतना ही कहता है -
"मेरी हर आवश्यकता के लिए परमात्मा पर्याप्त है । मेरी हर आवश्यकता के लिए परमात्मा पर्याप्त है"।
बस enough adequate
मुझे और कुछ नहीं चाहिए। किसी से कुछ नहीं चाहिए । हार्दिक धन्यवाद ।

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