Premium Only Content
Pravachan Shree Vishwamitra ji Maharaj
परम पूज्य डॉक्टर विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से
((1011))
*श्री भक्ति प्रकाश भाग ५२८(528)*
*आत्मिक भावनाएं*
*सुख*
*भाग-७*
ठीक इसी प्रकार से संत महात्मा साधक जनों हमें समझाते हैं,
जिसे आप विषय सुख समझते हो, जिसे आप यह मानते हो, कि हमें विषयों से सुख मिल रहा है, नहीं;
यह विषय सुख नहीं है ।
यह आपकी अपनी आत्मा, आपके परमात्मा जो भीतर विराजमान है, उसका प्रतिबिंब है । आज आपने पढ़ा । आज आपने शांत भावना पढ़ी है, दूसरी भावनाएं पढ़ी है, प्रिय भावना पढ़ी है । उसके अंतर्गत स्वामी जी महाराज ने लिखा है,
जो कुछ भी आपको प्राप्त होता है,
जो कुछ भी आपको प्रिय लगता है, प्यारा लगता है, मानो उसमें ऐसा कुछ नहीं है। यह आपका अपना आत्मा उसमें प्रतिबिंब होता है ।
आप का परमात्मा अपने भीतर बैठा हुआ, उसमें प्रतिबिंबित है । तो वह आपको प्रिय लगने लग जाता है । यदि ऐसा नहीं है तो कभी अप्रिय लगने लग जाता है । प्रेम उसी पर उमड़ता है जो अपने अंदर से निकलता है।
उदाहरणत्या देखिएगा एक और उदाहरण ।
आज आपका कोई विशेष मिठाई खाने को मन किया । परमेश्वर की कृपा, प्रारब्ध के अनुसार वह मिठाई आपको मिल जाती है । मिठाई मिलते ही, ना मिलने तक मन चंचल था, उस मिठाई को पाने की चंचलता थी, बेचैनी थी, वह जैसे ही बेचैनी खत्म हुई, मिठाई आपको मिली, बेचैनी खत्म हो गई । आप ने मिठाई खाई । आपको लग रहा है कि यह सुख मुझे मिठाई से मिला है ।
नहीं, संत महात्मा यहां समझाते हैं यह सुख मिठाई का नहीं है । उस मिठाई ने क्या किया है, जो आपके मन में मिठाई ना मिलने की बेचैनी थी, वह बेचैनी दूर हुई,
मन शांत हुआ, चित् शांत हुआ । मानो मन साफ हुआ। उसके अंदर जो लहरें,बेचैनी की लहरें जो उठ रही थी,
वह शांत हो गई । जैसे आप एक सरोवर में पत्थर मारो तो लहरें उठती हैं, आपको लगता है कि सरोवर का जल में जो है स्तर जो है वह भी बढ़ रहा है, लहरें उसमें उठ रही हैं । ठीक इसी प्रकार से जब मन बेचैन होता है चित् बेचैन होता है, तो इनमें भी इस प्रकार की तिरंगे, बेचैनी की तरंगे उठती है । जैसे ही यह तरंगे शांत होती हैं तो आपका अपना प्रतिबिंब उसमें दिखाई देता है । आप स्वयं आत्मा हो, आप स्वयं परमात्मा हो । आप का प्रतिबिंब उसमें दिखाई देता है। वह आपको सुख का अनुभव देता है, वह आपको आनंद का अनुभव देता है । यह सुख मिठाई से नहीं है, हमें भ्रांति यह है कि हमें यह सुख मिठाई खाने से मिल रहा है ।
संत महात्मा समझाते हैं बिल्कुल गलत, उस दिन आपने देखा था, वस्तु में कोई भी सुख देने की सक्षमता नहीं है । किसी वस्तु में भी,
एक ही वस्तु एक व्यक्ति के लिए महासुखदाई, वही वस्तु दूसरी व्यक्ति के लिए महादुखदाई ।
बच्चे का सुख अलग है,
बड़े का सुख अलग है, विवाहिता का सुख अलग है, मानो इनका वस्तुओं के साथ संबंध नहीं है ।
मन के खेल हैं । मन शांत होता है तो उसे क्या चीज अच्छी लगती है, क्या उसके अनुकूल है, वह उसे सुख कहता है । जो उसके प्रतिकूल है, उसे वह दुख कहता है । चित् की शांति, साधक जनों मन की शांत,
यूं कहिएगा सुख का साधन
है । क्या अर्थ है इसका ।
चित् को कहीं बाहर से शांति लानी है, नहीं ।
देवियों सज्जनों चित् का स्वभाव है शांति । यह सुख दुख जो उसमें आते हैं यह उसका स्वभाव नहीं है ।
जैसे एक कपड़ा, स्वच्छता उसका स्वभाव है ।
हुआ क्या है ? कपड़ा गंदा हो गया तो, उसकी स्वच्छता ढक गई । यही होता है ना देवियों। उस कपड़े की स्वच्छता जो है, सफाई जो है, जो साफ सुथरापन है, वह ढक गया। किसके कारण, मैल के कारण । ठीक इसी प्रकार से हमारा चित् भी सदा सदैव शांत रहता है स्वभाववत। लेकिन उस पर दुख आता है, अशांति आती है, बेचैनी आती है, तनाव आता है, चिंता आती है, यह सब की सब चीजें उस शांति को ढक देती हैं । वह शांति कहीं जाती नहीं है, ढक जाती है । जैसे ही आप गंदा कपड़ा, मलिन कपड़ा, धोते हो, मैल धुलती है, स्वच्छता फिर प्रकट हो जाती है ।
तो करना क्या है अपने मन को स्वच्छ करना है । अपने चित् को साफ करना है । शांति कहीं बाहर से नहीं आती ।
भूल देवियों सज्जनों हमसे यही हो रही है । सब कुछ हमारे अंदर है । और हम खोज रहे हैं बाहर । जिंदगिया मिट जाती हैं, जवानियां मिट जाती है इसमें ।
लेकिन वह सुख शांति जो अंदर बैठी हुई है, वह कहीं बाहर से आपको नहीं मिलती। अंततः व्यक्ति निराश, हताश खत्म कर देता है अपने जीवन को । जीवन खत्म हो जाता है ।
आज साधक जनों शांत भावना पर स्वामी जी महाराज ने प्रसंग आरंभ किया था । आगे जिस दिन भी समय लगेगा इसी शांति पर चर्चा करेंगे । सुख एवं शांति साधक जनों यही दो विषय हैं जानने योग्य । जिनके बारे में हम यह सब कुछ करते हैं । सुख और शांति में अंतर पता होना चाहिए ।
ढूंढ रहे हैं शांति,
प्रयास कर रहे हैं सुख पाने के लिए ।
कोई मेलजोल आपस में नहीं बैठता ।
सुख तो फिर जिसकी खोज कर रहे हैं, वह तो नश्वर है ।
वह तो Transitory सुख है। देवियों सज्जनों दुख युक्त सुख है । वह अंततः आपको दुख देकर ही मिटेगा । वह सुख नहीं है ।
शांति खोजिएगा ।
इस शांति प्राप्ति के लिए ही यह जीवन मिला हुआ है ।
तो आज यहीं समाप्त करने की इजाजत दीजिएगा । धन्यवाद ।
-
19:52
Adam Does Movies
7 hours ago $2.93 earnedEmilia Pérez Movie Review - It's Uniquely Awful
32.5K3 -
20:07
BlackDiamondGunsandGear
13 hours agoSPRINGFIELD ECHELON COMPACT / NOT GOOD
37.8K3 -
1:05:06
Man in America
13 hours agoThe Terrifying Truth Behind Chemical Fog, Wildfire Smoke & Chemtrails w/ Dr. Robert Young
32.9K44 -
2:54:47
Tundra Tactical
6 hours ago $5.28 earnedSHOT Show 2025 Wrap Up!! On The Worlds Okayest Gun Live Stream
38.5K -
LIVE
Right Side Broadcasting Network
1 day agoLIVE REPLAY: President Donald J. Trump Holds His First Rally After Inauguration in Las Vegas - 1/25/25
3,273 watching -
2:55:24
Jewels Jones Live ®
1 day agoWEEK ONE IN REVIEW | A Political Rendezvous - Ep. 107
120K41 -
1:33:29
Michael Franzese
1 day agoTrump Wastes No Time: Breaking Down Trump’s First Week Executive Orders | LIVE
130K94 -
1:26:44
Tactical Advisor
16 hours agoTrump Starting Strong/Shot Show Recap | Vault Room Live Stream 015
93.6K9 -
10:18
MrBigKid
11 hours ago $2.15 earnedInsanely Compact Hunting Tripod you HAVEN'T heard of... Revolve
49.5K5 -
20:29
marcushouse
18 hours ago $8.16 earnedUnleashing the Power of SpaceX's Starship: Why is it a Big Deal!?
84.4K11