Pravachan Shree Vishwamitra ji Maharaj

1 year ago
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परम पूज्य डॉक्टर विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से
((1007))

*श्री भक्ति प्रकाश भाग ५२४(524)*
*आत्मिक भावनाएं*
*सुख*
*भाग-३*

आत्मिक भावनाओं की चर्चा चल रही है । आज स्वामी जी महाराज ने सुख भावना से प्रसंग आरंभ किया है । साधक जनों दो-चार दिन लगाएंगे । इससे अगली ही भावना शांत भावना है । सुख एवं शांति पर कुछ दिन लगाएंगे, इसे समझने के लिए, यह क्या है ?

आज पूज्यपाद स्वामी जी महाराज ने फरमाया सुख का स्रोत आत्मा है ।
Distributor of sukh. मानो आपका अपना स्वरूप, हमारा अपना स्वरूप, आत्म स्वरुप, वास्तविक स्वरुप, सुख का स्रोत है । इन आत्मिक भावनाओं के अंतर्गत स्वामी जी महाराज हमें यह समझाना चाहते हैं, बाहर जो कुछ आप ढूंढते हो वह सही नहीं है । सब कुछ आपके भीतर है, सब कुछ आत्मा में है, सब कुछ परमात्मा में है । उसे खोजो वास्तविक चीज आपको मिलेगी । बाहर तो विषय सुख है, नश्वर सुख है । ऐसा सुख जो दुख के साथ ही युक्त है, ऐसा जीवन जो मृत्यु के साथ ही जुड़ा हुआ है । यह बाहर की बातें हैं । अतएव व्यक्ति हमेशा भटकता ही रहता है । हाथ कुछ नहीं आता । जैसे ही खाली हाथ व्यक्ति आता है, वैसे ही खाली हाथ चला जाता है । यह खाली हाथ भौतिक वस्तु के लिए नहीं कहा जा रहा । जिससे मुट्ठी भरनी चाहिए, जिसे वास्तविक सुख जिसे कहा जाता है, जिसे परमसुख जिसे कहा जाता है, जिसे अध्यात्म कहा जाता है, उससे यदि मुट्ठियां खाली है; संत महात्मा उसे कहते हैं कि व्यक्ति खाली हाथ आया था और खाली हाथ चला गया । मानो अपना जीवन असफल कर के चला गया । निरर्थक जीवन उसने बिताया । तो साधक जनों सुख की चर्चा शुरू करते हैं ।

जिस सुख से हम परिचित हैं वह सुख क्या है ? एक राज कन्या है । स्नान करने के लिए किसी सरोवर के किनारे गई है । सखियां भी साथ हैं । सबने जलक्रीडा हेतु जल में प्रवेश किया है । अपने अपने कपड़े उतारकर तो सरिता के किनारे रखे हुए हैं । राजकन्या के पास एक नौलखा हार भी है । उस वक्त की बात जब उस हार की कीमत नौ लाख रुपए थी । सोचो कितना अनमोल हार उस राजकन्या ने पहन रखा होगा । वह जल में प्रवेश करने से पहले, बाहर उसे उतार दिया है । स्नान किया सबने । खूब आनंद ले रही हैं। सब सखियां राजकन्या साथ है । बाहर निकली है स्नान करके क्या देखती हैं, कपड़े तो हैं, लेकिन नौलखा हार नहीं है । खोज शुरू हो गई
है ।

राजा साहब को सूचना मिली है । मेरी पुत्री का नौलखा हार गुम हो गया है । सरोवर के किनारे मानो कहां गया होगा ? सरोवर में ही गिरा होगा । इस कन्या को याद नहीं कहां गिरा, क्या हुआ है । बाहर उतारा था हार, लेकिन वह हार मिल नहीं रहा । अनेक प्रकार के Divers, अनेक प्रकार के प्रयत्न किए जा रहे हैं, की हार को ढूंढा जाए, लेकिन कहीं मिल नहीं रहा ।

आज कुछ दिनों के बाद एक लकड़हारा जंगल से लकड़ी काट कर आया है । पानी पीने के लिए सरोवर के किनारे गया । ढिंढोरा पिट चुका हुआ था राजा की तरफ से, जो इस हार का पता बताएगा या ढूंढ के हमें देगा उसे एक लाख रुपया इनाम मिलेगा । इस एक लाख रूपय इनाम की घोषणा दूर दूर तक चली गई हुई थी । तो इस एक लाख के लोभ में कई लोग आ जा रहे थे । इसी खोज में यह लक्कड़हारा, पानी पीता हुआ क्या देखता है ? जल में वह हार पड़ा हुआ दिखाई दे रहा है । Bottom पर, तल पर वह हार दिखाई दिया उसे । उसने डुबकी लगाई तैरना जानता था । डुबकी भी लगाना जानता था । डुबकी लगाई लेकिन हार हाथ में नहीं आ रहा । हाथ में कीचड़ आता है । थोड़ी देर तक फिर इंतजार करता है । मैंने अपनी आंखों से हार देखा है इसमें। कहां चला गया हार ? फिर थोड़ी देर बाद पानी साफ हुआ, फिर हार दिखा, फिर डुबकी लगाई । लेकिन हाथ में कीचड़ ही आ रहा है । बहरहाल उसका काम तो हो गया । जाकर राजा को सूचना देता है ।

राजा साहब आप की पुत्री का नौलखा हार उस सरोवर के अंदर ही है । मैंने अपनी आंखों से उस हार को देखा है। मैंने उसे पकड़ने की कोशिश की, निकालने की कोशिश की, लेकिन वह हाथ नहीं आ रहा । तो अब प्रयास अधिक जोर-शोर से शुरू हो गए | जो भी कोई जाता है, यदि स्थिर पानी होता है, हिलता जुलता नहीं है, साफ पानी है, तो सबको हार उसमें दिखाई दे रहा है । और जो भी कोई उस में डुबकी लगाता है उसके हाथ में हार नहीं आता कीचड़ आता है ।

कीचड़ पकड़ते हैं तो पानी गंदला हो जाता है, धुंधला पानी हो जाता है । फिर थोड़ी देर settle करने की इंतजार करते हैं । यह सब कुछ चल रहा है । बड़ी भीड़ रोज इकट्ठी होती है, लेकिन किसी के हाथ हार नहीं लगता । विचरते हुए एक संत महात्मा उधर से निकले हैं । पूछा क्या बात है, क्यों इतना यह लोग इकट्ठे हो रहे हैं ? सारी कहानी सुनाई । कहा राजा की पुत्री का हार, नौलखा हार, इस सरोवर में गुम हो गया है। लेकिन मिल नहीं रहा किसी को ।

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