Pravachan Shree Vishwamitra ji Maharaj

1 year ago
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परम पूज्य डॉ विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से
((993))

*श्री भक्ति प्रकाश भाग ५१०(510)*
*ईर्ष्या एवं अभिमान*
*भाग-८*

कल की चर्चा, वह महिला, वह रोहिणी, जिसका मुख खराब हो गया हुआ था, अपने भाई के कहने से उसने सिमरन एवं सेवा का सहारा लिया है । गुरु महाराज एक आश्रम बना रहे हैं । उसे वहां कहा है आने के लिए । तन से, मन से, धन से, इस स्थान की सेवा कर । उस बच्ची ने ऐसा ही किया है । श्रद्धा पूर्वक किया है । जितना धन दे सकती थी, धन दिया । तन से सेवा की । मन से सेवा
की । श्रद्धा पूर्वक, प्रेमपूर्वक सेवा एवं सिमरन साथ साथ किया है । थोड़ी ही देर के बाद उसका रोग खत्म हो गया है । प्रसन्न भी होगी ।

आज संत से मिलन हुआ है । तो संत समझा रहे थे कल, आज उसी चर्चा को आगे करते हैं, संत समझा रहे थे रोहिणी बिटिया -तू जानती है ना कि तेरा रोग कोई दवाई तो इतने दिनों मैं मैंने तुम्हें दी नहीं । जितने दिन भी तुमने यहां पर सेवा की है, सिमरन किया है, कोई दवाई कोई local application या कोई अंदर की दवाई खाई तो नहीं है, हां सिमरन किया है, सेवा की है । पर इतने दिन अहम् याद नहीं आया । इतने दिन तेरा अहम् जिसके कारण यह रोग था, तेरा अहंकार, जिसके कारण यह रोग था, अहंकार था तो उसको ठेस लगती थी । तो क्रोध भी उत्पन्न होता था । ईर्ष्यालु स्वभाव है तेरा । इन तीन दुर्गुणों के कारण तेरा रोग यह बना हुआ
था ।

यह तीनों के तीनों रोग इतनी देर दबे रहे, ना अहंकार आया, ना क्रोध और ना ही ईर्ष्यालु स्वभाव ही तू प्रयोग कर सकी । इन कुछ महीनों में यह तीनों के तीनों दुर्गुण तेरे दबे, रहे तीनों के तीनों विकार तेरे दबे रहे, और तेरा रोग खत्म हो गया । तो स्पष्ट है देवी बिना दवाई रोग ठीक हुआ है । तो जो कारण थे रोग के, वह कारण मिटे हैं, तो तेरा रोग खत्म हो गया । मेरी माताओ सज्जनो यह रोग है, दूर करने वाले । इन रोगों को दूर करने के लिए ही आप यहां आते हो । इन रोगो से दूर कैसे रहा जाए । इस विधि को सीखने के लिए ही और इस विधि को अपनाने के लिए ही यहां आते हो । शरीर के रोगों के लिए साधक जनों डॉक्टर की जरूरत है, कोई शक नहीं । आप जाते हो, भागते भागते जाते हो, बड़े बड़े अस्पतालों में भी जाते हो । Specality hospitals में भी जाते हो, अपने शरीर के रोग ठीक करने के लिए, कोई बात नहीं है ।

संत महात्मा यहां स्पष्ट करते हैं, इन विकारों को दूर करने के लिए एक ही औषधि है और वह है राम नाम । सत्संगति के माध्यम से यह राम नाम की उपासना आपको सत्संग के लिए प्रेरित करती है । इस उपासना के लिए इसीलिए आप यहां बैठे हुए हो । इस उपासना से यह विकार दूर होंगे, इस उपासना से यह रोग दूर होंगे । यह रोग डॉक्टरी इलाज से दूर नहीं होते । यह रोग डॉक्टर विशेषज्ञ जो हैं, जो speacialist हैं, जो different dpeacialist है, उनके रोग यह दूर करने कि उनके पास विधि नहीं है । उनकी विधि सत्संगति से ही मिलती है। और सत्संगति प्रेरणा देती है इस विधि को अपनाते रहिएगा । आप इस वक्त इसी विधि को अपना रहे हो । इसी विधि को आप ने अपनाया है । अभी आपने अमृतवाणी का पाठ किया है । यह राम नाम उपासना की विधि है । भक्ति प्रकाश का पाठ आपने किया है । यह नाम की उपासना की विधि
है । इसमें राम नाम के गुण गाए गए हैं, इत्यादि इत्यादि । महिमा गाई गई है, उपासना पद्धति सिखाई गई है । तो साधक जनो इन रोगों को दूर करने पर बल दीजिएगा ।

यह रोग दूर होंगे तो ही देवियो सज्जनो हम मुक्ति के अधिकारी बन पाएंगे । जीवन यात्रा तभी समाप्त होगी, जब यह रोग खत्म
होंगे । नहीं तो यह यात्रा शरीर की, यात्रा तो यहां खत्म हो जाएगी, आपकी यात्रा चलती
रहेगी । आपकी यात्रा तभी समाप्त होगी, जब यह रोग दूर होंगे । जो हमारे पुनर्जन्मों का कारण है । नहीं तो यह जीवन की यात्रा सतत् चलती रहेगी । एक चक्र है । इसीलिए इसे चक्र कहा जाता है ।
Never ending circle होता है ।
उसका आदि ना अंत कुछ नहीं होता ।
वह चक्र ही चक्र होता है । रेखा है, यहां से शुरू होती है वहां जाकर खत्म हो जाती है। यह circle है चक्र है । संसार चक्र कहा जाता है । इसे चौरासी लाख योनियों का चक्र कहा जाता है इसे । मानो ना ही इसका आदी है और ना ही इसका अंत है यह चलता रहता है । हां,जब आप तोड़ना चाहो जब आप विकार रहित हो जाओ, दोष मुक्त हो जाओ, दुर्गुण मुक्त हो जाओ, तो यह चक्र अपने आप टूट जाता है । खत्म हो जाता है। फिर जन्म नहीं लेना पड़ता । फिर यह मरण अंतिम मरण होता है । इसके बाद फिर कभी मरना नहीं होता ।

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