Pravachan Shree Vishwamitra ji Maharaj

1 year ago
9

परम पूज्य डॉ विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से
((989))

*श्री भक्ति प्रकाश भाग ५०६(506)*
*ईर्ष्या एवं अभिमान*
*भाग - ५*

सुना, बेटा आया है । माता पिता ने इतने वर्षों के बाद, सारे के सारे परिवार के सदस्य मिलने के लिए गए हैं, देखने के लिए गए हैं । इतने वर्षों के बाद बेटा कितना बड़ा हो गया है । यह भिक्षुक life, यह सन्यासी life, कैसी होगी । क्या उसने बाल बढ़ाए हुए हैं या सिर मुंडवाया हुआ है । कौन से कपड़े पहनता है, इत्यादि इत्यादि । बड़े भाव चाव से अपने पुत्र को देखने के लिए वह गए हैं । जाकर सबने संत जी को प्रणाम किया । लड़के ने पूछा रोहिणी नहीं आई ? रोहिणी उसकी बहन का नाम है । संकोच में है जाऊं ना जाऊं । क्या हुआ है उसे, क्यों नहीं आई मुझे मिलने के लिए, किस बात का संकोच है उसे ? कहा तू तो जानता है कि वह बहुत सुंदर थी, अब नहीं । उसके मुख पर कील मुंहासे इतने हो गए हैं, ऐसे हो गए हैं, जैसे फफोले होते हैं । वह अपना मुख किसी को दिखाना नहीं चाहती ।

रोग की लंबाई इतनी हो गई है, कि वह परमात्मा से भी रुष्ट, संतो महात्माओं से भी रुष्ट, सबसे रुष्ट, हमसे भी रुष्ट । जैसे हम दोषी हो । परमात्मा से भी रुष्ट जैसे परमात्मा का दोष हो । संतो महात्माओं से भी रुष्ट, जैसे उनका दोष हो । निराश हैं बहुत । अतएव घर से बाहर नहीं निकलती । पर मैं तो ऐसा समझता हूं, कोई वक्त था जिस वक्त उसके सौंदर्य की इस नगर में भारी चर्चा होती थी । हां, वह समय निकल गया ।
संत झट से भांप गए यह उसी के अभिमान का प्रतीक, यह अभिमान का भूत, उसके सिर पर सवार हो गया होगा । सौंदर्य का भूत, उसी के कारण यह सब चीजें हुई है । उसी अभिमान को लगी ठेस, तो अब क्रुद्ध जीवन है, अब ईर्ष्यालु जीवन है । सब प्रकार की अग्नियां उसके अंदर अब जल रही है । वह किसी को देखना नहीं चाहती । ऐसा नहीं है कि वह किसी को मुंह नहीं दिखाना चाहती, लेकिन वह संसार से, प्रकृति से, परमात्मा से, वातावरण से, परिस्थितियों से वह इतनी रुष्ट है, कि उनकी शक्ल नहीं देखना चाहती । ऐसी हालत उसकी हो गई
है ।

बातों ही बातों में रोहिणी का आगमन हो गया । आ गई । आखिर, भाई था । मिलने के लिए आई । रहा ना गया । बैठो रोहिणी, तू इतनी देरी से क्यों आई है । क्या बात है ? अपना मुख थोड़ा सा ऐसे करके खोला दिखाया । छोड़ इस चिंता को -भाई ने कहा भूल जा इसे ।
forget about it.
गुरु महाराज यहां आश्रम का निर्माण कर रहे हैं । कल ही से निर्माण का कार्य शुरू होगा । धन से, तन से, मन से निर्माण कार्य में जुट जा । यहां रहकर सिमरन कर, यहां रह कर सेवा कर । तन से भी कर, धन से भी कर, एवं मन से भी कर ।
forget about it.

बात जच गई । बड़ा भाई था । बात मान
गई । रोहिणी के पास निजी जो कुछ भी था, उसे बेच डाला । जो पैसे इकट्ठे हुए वह गुरु महाराज के चरणों में रख दिए । महाराज इसे निर्माण कार्य में लगा दीजिएगा । सुबह खाना खाकर, नाश्ता इत्यादि करके तो आ जाती है । दिनभर वहीं रहती है । रात्रि जब काम समाप्त होता है, सायं काल, रात्रि जब काम समाप्त होता है, तो चुपचाप चली जाती है । किसी से कोई बातचीत नहीं । Supervision करती है । जहां कहीं काया से कुछ करने की जरूरत पड़ती, पीछे नहीं हटती, कर देती है । अक्सर लोगों से काम करवाती है । मजदूरों से काम करवाती है । देखती है, सब सही ढंग से काम कर रहे हैं । कहीं कोई कामचोर तो नहीं, कहीं कोई बेईमान तो नहीं, कहीं कोई हेरा फेरी तो नहीं हो रही ।
सो हर जगह से बहुत ईमानदारी से, एकनिष्ठ होकर रोहिणी सिमरन एवं सेवा में लगी हुई है।

आपको आश्चर्य होगा देवियों सज्जनों सुनकर, कुछ ही महीनों में 90% रोग ठीक हो गया । आज जब 90% रोग ठीक हो गया तो मानो कुछ भी नहीं रहा बाकी ।
10% रोग क्या होता है ? जो मुख नहीं दिखाना चाहती थी, अब अपना मुख भी दिखाना चाहती है, दूसरों का मुख भी देखना चाहती है । अतएव आज संत महात्मा से मिलन हुआ । जाकर श्री चरणों में प्रणाम किया । बिटिया तूने बहुत सेवा की है । तू बहुत अच्छी है । तूने बहुत सिमरन भी
किया है ।

इन दोनों चीजों से साधना सफल हो जाती है, संपन्न हो जाती है । देख ना, रोगी मुखड़ा, तेरे अंदर ना जाने किस प्रकार का रोग था, तेरा रोगी मुखड़ा, अधिक नहीं तो कम से कम 90% तो बिल्कुल ठीक हो गया है ।
यह 10% क्यों रहा, इसलिए तूने जो सिमरन और सेवा कि यहां पर तन से, मन से, धन से वह अपनी इच्छा से नहीं की । भाई की इच्छा से थी ।

शेष 10% तू चाहती है कि यह भी ठीक हो, अब अपनी इच्छा से सिमरन एवं सेवा कर । मैं तुम्हें आश्वासन देता हूं तेरा शेष रोग भी ठीक हो जाएगा । तू जानती है बच्ची यह रोग किस कारण से था । तुझे अपने सौंदर्य का बहुत अभिमान हो गया था । तू किसी दूसरे को सुंदर मानती नहीं थी । मेरे से अधिक कोई सुंदर हो सकता है, यह मानती, तू स्वीकार करने को तैयार नहीं थी । यदि कोई था तो उसके प्रति ईर्ष्या, यदि कोई यह कहता कि तेरे से अधिक वह सुंदर है, तो यह तेरे से सहन नहीं होता । तू क्रोध से आग बबूला हो जाती ।

तीन तीन अग्नियां तेरे अंदर जल रही थी । उन्हीं अग्नियों के कारण, उन्हीं ज्वाला के कारण तेरे अंदर यह रोग आ गया, चमड़ी का रोग । ठीक हो जाएगा ।
10% जो बाकी रहता है, वह भी ठीक हो जाएगा । संत महात्मा यहां समझाते हैं, साधक जनो घोषणा करते हैं, आप मानो ना मानो, डॉक्टरी medical science, आयुर्विज्ञान इस बात को माने या ना माने, वह बेशक कहें की TB का कारण micobacterium है, typhoid का कारण sylmondilatify है, इत्यादि इत्यादि । पस पड़ गई है वह stephlococus के कारण है । सब ठीक बातें होगी । वह भी ठीक है । लेकिन यह भी गलत नहीं है, बहुत से हमारे शारीरिक रोग, मानसिक रोग एवं आध्यात्मिक रोग, देवियो सज्जनो अभिमान, ईर्ष्या, क्रोध एवं द्वेष के कारण । तो आज इस चर्चा को यहीं समाप्त करते हैं । कल इस चर्चा को और आगे जारी रखेंगे धन्यवाद ।

Loading comments...