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Pravachan Shree Vishwamitra ji Maharaj
परम पूज्य डॉ विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से
((983))
*श्री भक्ति प्रकाश भाग ५००(500)*
*वचन के साधन (वाणी की महत्ता)*
*भाग-७*
बहुत-बहुत धन्यवाद । वचन के साधनों की चर्चा चल रही है साधक जनों । अभिमानी शब्द कभी नहीं बोलना, कठोर शब्द कभी नहीं बोलना, कटु शब्द कभी नहीं बोलना, क्रोधी शब्द कभी नहीं बोलना, वाणी पर पूरा अंकुश होना चाहिए । साधक जनों साधना का एक महान अंग है यह । जप के माध्यम से हम वाणी को सिधाते हैं । जप इसीलिए करते हैं कि हमारी जिव्हा को जो गंदी मंदी गलत आदतें पड़ी हुई है, इसका स्वभाव बदले । इसकी आदतें बदले । निंदा ना करें, चुगली ना करें, अभिमानी, ईर्ष्यालु शब्द ना बोले, दूसरों के घर जलाने का काम ना करें, फूट डलवाने वाले शब्द ना बोले, बड़ी प्रवीण है यह सब कुछ करने में, करती है ।
दो दुकानदार हैं । एक की मिर्ची की दुकान है, और बिल्कुल पड़ोस में दो एक दुकानें छोड़कर तो शहद बेचने वाले की दुकान है । शहद बेचने वाले की दुकान पर कोई इक्कड़ दुक्कड़ ग्राहक होंगे । लेकिन मिर्ची वाली दुकान पर बड़ी भारी भीड़ लगी रहती है । ग्राहक घूम फिर कर उसी की दुकान पर जाते हैं । शहद बेचने वाले की दुकान पर बहुत कोई कोई जाता है ।
आज इस दुकानदार ने किसी ग्राहक से
पूछा -
भाई मेरी समझ में नहीं आता, क्या कारण होगा ? क्यों उसकी दुकान पर ग्राहक ही ग्राहक भीड़ लगी रहती है । हालांकि वह मिर्ची बेचने वाला है । मैं तो मीठी चीज शहद बेचने वाला हूं । मेरे पास कोई इक्कड़ दुक्कड़ ग्राहक आता है । ग्राहक कहता है लाला ऐसा लगता है, मिर्ची बेचने वाला मिर्ची में शहद घोल कर तो बेचता है । उसकी वाणी बड़ी मधुर है, उसकी वाणी बहुत मीठी है और उसी वाणी के प्रभाव से, प्रताप से उसकी मिर्ची की sale इस प्रकार की है। लगता है तू शहद भी बेचता है पर मिर्ची डालकर बेचता है । इसलिए तेरी दुकान पर शहद खरीदने के लिए कोई ग्राहक नहीं आता । कितनी महत्वपूर्ण बातें हैं, साधक जनों । अपनी वाणी पर पूरा संयम होना चाहिए ।
संत महात्मा यहां तक कहते हैं, वाणी से व्यक्ति के वास्तविक व्यक्तित्व की पहचान होती है । ऐसा होता होगा तो ही संतो महात्माओं ने इस प्रकार का कहा है ।
एक राजा, एक मंत्री और उनके साथ एक नौकर, तीनों के तीनों वन में गए हैं । राजा के पास भी घोड़ा है । तीनों के पास एक एक घोड़ा होगा । जंगल में पहुंचकर राजा जंगल के मनोरम दृश्य देखकर खो सा गया है । बहुत अच्छा लगा उसे, कहने को जंगल, पर बहुत सुन्दर वाटिका जैसी सब कुछ बहुत systematic जैसे बगीचे में होता है । जंगल तो जंगल ही होता है । जंगल जंगली, लेकिन बगीचा तो जंगली नहीं होता । बगीचा तो बहुत systematic होता है ।
कहीं-कहीं light लगी हुई होती है । एक ही तरह के पेड़ होते हैं । एक ही तरह के फूल होते हैं । बड़े कतारों में होते हैं, इत्यादि इत्यादि । ऐसा ही वह जंगल था । राजा उसे देखकर तो खो से गए हैं ।
दूर एक सुंदर हिरण पर नजर पड़ी । राजा उसे पकड़ने के लिए दौड़ पड़े । घोड़े पर थे । खूब तेज घोड़ा दौड़ाया । लेकिन हिरण भी कोई कम दौड़ने वाला नहीं था । उसकी speed भी बहुत अच्छी थी । दूर राजा को कहीं ले गया । हिरण पकड़ा भी नहीं गया, लेकिन राजा दूर चला गया है । इधर मंत्री एवं नौकर दोनों इंतजार कर रहे हैं राजा साहब की । जब लौटने में देरी लगी तो मंत्री महोदय ने कहा नौकर से-जाओ राजा साहब को
ढूंढो । निकल पड़ा है । दूर जाकर एक कुटिया आती है । कुटिया देखता है । उसके बाहर एक दृष्टिहीन महात्मा बैठे हुए हैं । यह नौकर जाकर उन्हें कहता है -
अरे ओ अंधे; इधर से कोई घोड़े वाला निकल कर तो नहीं गया । क्या तूने देखा है इधर से किसी को ? प्रश्न ही कैसा था । एक नेत्रहीन व्यक्ति, एक दृष्टिहीन व्यक्ति क्या देखेगा ? प्रश्न गलत है उसका । कहा मुझे पता नहीं, मुझे माफ करें, मुझे पता नहीं ।
नौकर को भी लौटने में देरी हो गई ।
तो मंत्री खुद निकल पड़े हैं ढूंढने के लिए । अब नौकर को भी ढूंढना है और राजा साहब को भी ढूंढना है । मंत्री साहिब भी उसी कुटिया के सामने पहुंचे हैं । उनसे कहते हैं - ओ साधु क्या इधर से कोई व्यक्ति निकले हैं। हाथ जोड़कर कहता है, मंत्री महोदय आपका नौकर आया था, इसके अलावा मुझे और कोई पता नहीं । थोड़ी देर के बाद उसी कुटिया के आगे राजा स्वयं आए हैं । आकर हाथ जोड़कर कहते हैं -साधु बाबा चरणों में प्रणाम स्वीकार करें । क्या मुझे खोजते खोजते कोई व्यक्ति इधर से निकले तो नहीं । हां, राजा साहब सबसे पहले आपका नौकर आया था । उसके बाद फिर आप के मंत्री महोदय आए थे । अब आप स्वयं पधारे हैं । तीनों इकट्ठे हुए हैं । मन में गहरी सोच । एक दृष्टिहीन व्यक्ति को कैसे पता लग गया की एक राजा है, एक मंत्री और एक नौकर ।
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