दीपावली पर "दिवारी नांच"। अहीरी नांच

2 years ago
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मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में दिवाली के त्यौहार पर अलग-अलग तरह के रीति-रिवाज और परंपराएं देखने को मिलती हैं. इन्हीं में से एक है 'दिवारी नाच. इसमें दीपावली की रात से मवेशी चराने वाले लोग घर-घर जाते हैं और वहां दोहा डालते हुए आदिवासी नृत्य करते हैं. जिसे दिवाली नृत्य कहा जाता है.

इस दौरान झाड़फुस का बना हुआ छाहूर ये लोग अपने साथ रखते है। बांसुरी, थाली और मादर बजाकर गाना गाते हुए नाचते है। दीपावली के मौके पर छाहूर का बहुत महत्व होता है. मान्यता यह है कि इससे ये लोग घरों में जाकर बिध्न बाधा को भागते है।पुरानी परंपरा का निर्वहन करते हुए यादव समाज के लोग पहले देवताओं का आह्वान करते है और इसके बाद पारंपरिक वेशभूषा पहनकर नगर में जाकर हाथों में छाहूर लिए मांदर की धुन पर नृत्य करते हुए देवताओं को घरों में जागते है। लोग अपने घरों में अहीरों को देवताओं को जगाते हुए देखकर खुश होते है और इसके लिए उन्हें दक्षिणा और प्रसाद देते है। अहीरों के कई ग्रुप इस नृत्य को करते हुए पूरी रात घर घर घूमते है। उनका यह क्रम सुबह होने तक जारी रहता है। दीपावली की रात से देवउठनी ग्यारस तक यह परमरागत नृत्य जारी रहता है।

इस परंपरा को लेकर मान्यता यह भी है कि इससे घर की सभी बलाय खत्म हो जाती हैं. इसके बाद अच्छा वक्त शुरू हो जाता है. इसलिए भी लोग इस ग्रुप का इंतजार करते रहते हैं. चाहे फिर वह आधी रात को आएं या दूसरे दिन आए। आदिवासी क्षेत्रों में दीवाली की रात ये लोग घर के कोने कोने में जाकर नृत्य करते है पर आज भी लोग इनका इंतजार करते है शहरी क्षेत्रों में भी कोई इन्हे घर में आने से रोकता नहीं है।

दिवाली नृत्य का ग्रुप दीपावली की रात से एक्टिव होता है और एकादशी तक यह चलता है. हालांकि इसके भी अलग-अलग गांव में अलग-अलग रिवाज है. लेकिन बदलते वक्त के साथ कहीं न कहीं यह परंपरा अब विलुप्ति होने की कगार पर है. मुख्यरूप से अहीर जाति लोग इस नृत्य को करते थे, नई पीढ़ी इन सबसे दूर होती जा रही है।

अहिरी नृत्य। दीवारी नांच। दीवाली पर आदिवासी अंचल में होने वाला विशेष नांच। प्रेतवाधाओ को भागने और भगवान को जगाने किया जाता है अहीरों द्वारा नृत्य।

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