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2006 में हुए करौंथा कांड का कारण क्या था? | Sant Rampal Ji Satsang | SATLOK ASHRAM
2006 में हुए करौंथा कांड का कारण क्या था? | Sant Rampal Ji Satsang | SATLOK ASHRAM
करोंथा कांड 12/7/ 2006
"सतलोक आश्रम" रोहतक-झज्जर रोड पर करौंथा गांव से 2 किलोमीटर दूर तथा डीघल गांव से 4 किलोमीटर की दूरी पर सड़क पर गांव करौंथा की सीमा में स्थित है। करौंथा जिला रोहतक (हरियाणा) का गांव है। अप्रैल वर्ष 1999 में, ग्राम करौंथा जिला रोहतक (हरियाणा) में सतलोक आश्रम करौंथा की स्थापना हुई । महीने मे एक बार प्रत्येक पूर्णिमा के दिन सत्संग होने लगा । बहुत संख्या मे भक्त्जन सत्संग सुनने के लिए आने लगे। बाबा रामपाल जी ने सभी धर्मशास्त्र गीता, वेद, पुराण, बाइबल, कुरान, गुरुग्र्ंथ साहेब, मे लिखित प्रमाण आधार से आध्यात्मिक ज्ञान को पढा और प्रत्येक धर्म, पंथ अर्थात वर्तमान मे जो अनगिनत पंथ चले हुए है इसके अलावा समाज में की जा रही भक्ति को भी जाना। उसमें पाया कि जो भी धर्म पंथ या समाज जिस भी ग्रंथ का नाम लेकर अपना धार्मिक प्रचार कर रहा है। वह स्वयं नहीं जानता कि वो जिस ग्रंथ को सत्य मानते हैं। वो उसके विपरीत ज्ञान और भक्ति विधि बता रहे हैं और तब आतम कल्याण के उद्देश्य से बाबा रामपाल दास जी ने अपने सत्संग में प्रोजेक्टर के माध्यम से सभी धर्मग्रंथों के आधार पर सभी धर्मगुरुओं के ज्ञान को उन्हीं की पुस्तकों में दिखाकर उनके ज्ञान की परख और फैसला उन पर और उनके शिष्यो पर ही छोड़ दिया । जिस कारण देखते ही देखते सामाजिक पाखंडवाद की बेङियां टूटने लगी। लोग जागरूक हो गए। उन्हें समझ आ गया कि, हम गलत ज्ञान देने वाले गलत गुरु की शरण है। वे अपने गुरुओं, संतों और आचार्यों से सवाल करने लगे कि, आप हमारे सच्चे शास्त्रों के विपरीत सारा ज्ञान बता रहे हैं। इस तरह के तर्क का,जवाब देने में असमर्थ, ज्ञान की कमी और आर्थिक रूप से हालात बिगड़ने के डर से, आत्म कल्याण को मुख्य ना समझते हुए धर्मगुरुओं ने संत रामपाल जी को नष्ट करने की योजना गढी। ताकी उनका आध्यात्मिक पाठ्यक्रम पर आधारित तत्वज्ञान वही खत्म हो जाए।
यहां आपको थोङी अलग लेकिन एक विशेष जानकारी देने की जरूरत लग रही है। कबीर ज्ञान को खंगालते समय मेरी नज़र में एक वाणी आयी। जिसमे कबीर साहिब ने सच्चे संत की पहचान बताते हुए लिखा है कि,,
जो मम संत सत उपदेश दृढ़ावे।
वाके संग सभि राढ़ बढ़ावे ।।
अर्थात जो संत सभी वेद शास्त्रों के आधार पर सतज्ञान देता है उसके साथ अन्य गुरु, महंत, आचार्य सभी झगड़ा करते हैं।
कुछ ऐसा ही नजर आ रहा था संत जी के भी प्रमाणित ज्ञान प्रचार प्रसार और उनकी आध्यात्मिक ज्ञान की लोकप्रियता को देखकर। इसी बीच एक और बात जो स्पस्ट हुई। वो ये की ऐसा नहीं था कि बाबा रामपाल जी किसी एक पंथ (आर्य समाज़) पर ही केंद्रित होकर अपनी व्यक्तिगत राय दे रहे थे, कि, इन लोगो को कोई भी आध्यात्मिक ज्ञान नहीं है। बल्कि बाबा रामपाल जी ये सब कुछ केवल आत्मकल्याण के उदेशय से सही और गलत की पहचान बताकर मोक्ष मार्ग को प्रत्यक्ष करने के लिये कर रहे थे।
ठीक वैसे ही जैसे नकली नोट और असली नोट की पहचान बताने के लिए नकली नोट की सभी कमियां जनता के सामने सरकार द्वारा निर्धारित व्यक्ति प्रत्यक्ष करता है। ताकि नकली नोटों के इस्तेमाल से होने वाली हानियों से जनता बच सके। क्योंकि यह एक आध्यात्मिक ज्ञान है , इसलिए यहां सरकार परमेश्वर है और उनके द्वारा निर्धारित संत बाबा रामपाल दास जी । लेकिन इन सभी पन्थो के बीच केवल आर्य समाज ने ही जो एक धार्मिक समाज होने का दावा करता है। उसने बाबा रामपाल जी के बताए इस ज्ञान को व्यक्तिगत रूप से लेकर विद्रोह और उपद्रव शुरू किया ।
क्योंकि जिस प्रकार बाबा रामपाल समाज में फैले अन्य सभी पंथ प्रवर्तकों की पुस्तकों को वेदों से मिलान करके सिद्ध करते थे। ठीक उसी प्रकार आर्य समाज जो कि महर्षि दयानंद का अनुयाई है महर्षि दयानंद द्वारा लिखित पुस्तक "सत्यार्थ प्रकाश" को भी प्रोजेक्टर के माध्यम से स्क्रीन पर दिखाकर बताया कि इनका ज्ञान वेदो से नहीं मिलता। जबकि पूरा आर्य समाज महर्षि दयानंद सरस्वती जी के बताये अनुसार चारों वेद (ऋग्वेद यजुर्वेद सामवेद अथर्ववेद) को ही सत्य ज्ञान युक्त पुस्तक मानता है। वे यहां तक कहते हैं कि हम वेद के अतिरिक्त किसी आध्यात्मिक पुस्तक को सत्य नहीं मानते। जिन का ज्ञान वेदों से नहीं मिलता और बाबा रामपाल दास जी ने "सत्यार्थ प्रकाश" के ज्ञान की तुलना वेदों से ही करके सिद्ध कर दिया, कि महर्षि दयानंद को वेद ज्ञान बिल्कुल नहीं था और ना ही उनको समाज सुधार का ज्ञान था।
चुंकी महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने "सत्यार्थ प्रकाश" के समुल्लास 12 पेज 342 अनुभूमिका 2 में लिखा है की आपस में वाद-विवाद करने से सत्य असत्य का निर्णय होता है, अवश्य करना चाहिए। इसी आधार से बाबा रामपाल ने समाचार पत्रों के माध्यम से लेख लिखकर ज्ञान चर्चा के लिए आमंत्रित किया सिर्फ उन्हें ही नहीं विश्व के सभी धर्म गुरुओं को ज्ञान चर्चा के लिए आमंत्रित किया। जिसमें विशेष रूप से यह लिखा की अगर आप हमारे ज्ञान को गलत सिद्ध करते हैं तो मैं अपने सभी शिष्यों को लेकर आपकी शरण आ जाऊंगा और अगर आपका ज्ञान गलत होता है तो आपको इस ज्ञान को स्वीकार करना होगा.... Read More:- https://www.jagatgururampalji.org/hi/sant-rampal-ji-maharaj/karontha-episode/
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